Atmadharma magazine - Ank 123
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः
वर्ष अगियारमुंसम्पादकःपोष
अंक त्री जोरामजी माणेकचंद दोशी२४८०
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आत्माना हितनी दरकार
आ मनुष्यदेह पामीने ए नक्की करवा जेवुं छे के हुं कोण छुं, मारुं
स्वरूप शुं छे? आ मनुष्यभव पामीने, हवे मारुं हित केम थाय–तेनी जेने
दरकार नथी अने एम ने एम संसारनी मजूरीमां जीवन वीतावे छे तेनुं
जीवन तो पशु जेवुं छे. जीवनमां आत्मानी दरकार करीने जेणे अभ्यास कर्यो
हशे तेने अंतसमये तेनुं लक्ष रहेशे....जीवनमां जेवी भावना घूंटी हशे तेवो
सरवाळो आवीने ऊभो रहेशे. जेने पोताना आत्मानुं हित करवुं छे एवा
आत्मार्थी जीवे जीव–राजाने ओळखीने तेनी श्रद्धा करवी, बहुमान करवुं, सेवा
करवी, आराधना करवी.
–प्रवचनमांथीः आ प्रवचन विस्तारथी वांचवा माटे अंदर जुओ.
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वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्र ण रू पि या (१२३) चार आना
जैन स्वाध्याय मंदिरः सोनगढ (सौराष्ट्र)