आत्माथी जुदो ज छे, माटे प्रतिकूळसंयोग खरेखर आत्मामां छे ज नहि.
वळी बाह्य संयोग तो सातमी नरकमां अनंतो प्रतिकूळ छे, छतां त्यां पण
अनादिनो मिथ्याद्रष्टि जीव तत्त्वनिर्णय करीने सम्यग्दर्शन पामी जाय छे.
माटे प्रतिकूळता आत्माने नडती नथी.
छे तेने बधी अनुकूळता ज छे. तेने कांई प्रतिकूळता छे ज नहि.
तत्त्वनिर्णय करवा माटे साचा देव–गुरु अनुकूळ छे, ने अंतरमां पोतानो
आत्मा अनुकूळ छे. जेने साचा देव–गुरु निमित्त तरीके मळ्या ने अंतरमां
आत्मानी रुचि थई तेने बधुं अनुकूळ ज छे, तेने बीजी कोई प्रतिकूळता
नडती ज नथी.
मुद्रकः जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालयः वल्लभविद्यानगर (गुजरात)