* भेदविज्ञान अने सम्यग्दर्शन कई रीते थाय? *
सम्यक्दर्शन थाय छे. जे जीवमां सम्यग्दर्शन पामवानी तैयारी होय तेने पहेलां देशनालब्धिमां सम्यग्ज्ञानीनुं ज
सीधुं निमित्त होय छे, अज्ञानी पासेथी के एकला शास्त्रथी देशनालब्धि थती नथी. पात्र जीवने आत्मज्ञानी गुरु
ज निमित्त होय छे छतां ते निमित्तने लीधे पण कांई सम्यग्दर्शन थई जाय छे–एम नथी. सम्यग्दर्शन तो पोतानी
स्वसन्मुख बुद्धिथी अने पोताना पुरुषार्थथी ज थाय छे. माटे कह्युं के पोतानी बुद्धिथी नाखेला शुद्ध नयअनुसार
बोध थवाथी आत्मा अने कर्मनुं भेदविज्ञान थाय छे; एटले आमां ज्ञाननी दिशाने आत्मा तरफ पलटी नांखवानी
वात छे. सम्यग्दर्शन परनिमित्तथी तो नहि, रागथी नहि ने राग तरफ वळेली बुद्धिथी पण नहि, परंतु अंतरना
शुद्धस्वभाव तरफ वळेली बुद्धिथी ज थाय छे. अहो! परलक्षी ज्ञाननो उघाड वधारे होय के ओछो होय तेनी साथे
पण ज्यां सम्यग्दर्शननो संबंध नथी तो पछी रागनी के निमित्तनी तो वात ज क्यां रही?
* चैतन्यभगवाननी वार्ता.....*
जोईए; पूर्वे अनंतकाळमां आत्मानी समजण करी नथी तेथी शरूआतमां नवुं लागे पण रुचि अने उल्लासथी
समजवा मागे तो बधुं समजाय तेम छे. मारे मारा आत्मानुं हित करवुं छे–एम जेने अंतरमां दरकार जागे तेनी
बुद्धि आत्मानी समजण तरफ वळ्या विना रहे नहि.
* ‘प...द्म...पु...रा...ण! ’ *
पोताना भूतार्थस्वभावनी द्रष्टिथी ज मुक्ति पाम्या छे. आ आत्माराम पोताना स्वभावने भूलीने भववनमां
अनादिथी केम रखडयो अने हवे ते भवरूपी वनवास छोडीने पाछो स्वभाव–घरमां केम अवाय तेनी आ वात छे.
‘आत्मस्वरूपमां रमे ते राम’–आत्माना शुद्ध स्वभावने द्रष्टिमां लईने तेमां रमणता करे ते जीव रामचंद्रजीनी
माफक मुक्ति पामे छे, ने तेनुं आ पुराण छे.
अहो! चैतन्यवस्तुनो महिमा कोई अपूर्व छे, एनी निर्विकल्प प्रतीतिने कोई
रागनुं के निमित्तनुं अवलंबन नथी; शुभभावो अनंतवार कर्या छतां चैतन्यवस्तु
लक्षमां न आवी, तो ते रागथी पार चैतन्यवस्तु कोई अंतरनी अपूर्व चीज छे,
तेनी प्रतीत पण अपूर्व अंतर्मुख प्रयत्नथी थाय छे.–आम चैतन्यवस्तुने
पकडवानो अंतर्मुख उद्यम ते सम्यग्दर्शननो उपाय छे.