Atmadharma magazine - Ank 123
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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चिदानंद स्वरूपने जाणे. क्षणिक विकार स्वरूपे ज आखा आत्माने मानी ल्ये तो ते बुद्धि नथी पण मूढता छे.
* भेदविज्ञान अने सम्यग्दर्शन कई रीते थाय? *
जुओ, आत्मा अने कर्मनुं भेदज्ञान कई रीते थाय ते अहीं आचार्यदेव बतावे छे के पोतानी बुद्धिथी
अंतर्मुख थइने शुद्धनय प्रमाणे आत्माने जाणवाथी आत्मा अने कर्मनुं भेदज्ञान थाय छे अने शुद्ध आत्मानुं
सम्यक्दर्शन थाय छे. जे जीवमां सम्यग्दर्शन पामवानी तैयारी होय तेने पहेलां देशनालब्धिमां सम्यग्ज्ञानीनुं ज
सीधुं निमित्त होय छे, अज्ञानी पासेथी के एकला शास्त्रथी देशनालब्धि थती नथी. पात्र जीवने आत्मज्ञानी गुरु
ज निमित्त होय छे छतां ते निमित्तने लीधे पण कांई सम्यग्दर्शन थई जाय छे–एम नथी. सम्यग्दर्शन तो पोतानी
स्वसन्मुख बुद्धिथी अने पोताना पुरुषार्थथी ज थाय छे. माटे कह्युं के पोतानी बुद्धिथी नाखेला शुद्ध नयअनुसार
बोध थवाथी आत्मा अने कर्मनुं भेदविज्ञान थाय छे; एटले आमां ज्ञाननी दिशाने आत्मा तरफ पलटी नांखवानी
वात छे. सम्यग्दर्शन परनिमित्तथी तो नहि, रागथी नहि ने राग तरफ वळेली बुद्धिथी पण नहि, परंतु अंतरना
शुद्धस्वभाव तरफ वळेली बुद्धिथी ज थाय छे. अहो! परलक्षी ज्ञाननो उघाड वधारे होय के ओछो होय तेनी साथे
पण ज्यां सम्यग्दर्शननो संबंध नथी तो पछी रागनी के निमित्तनी तो वात ज क्यां रही?
* चैतन्यभगवाननी वार्ता.....*
आत्मानुं अपूर्व कल्याण करवा माटे आ वात समजवा जेवी छे. जेम कथा–वार्ता होय तो समजवुं सहेलुं
लागे छे,–तेम आ पण चैतन्यभगवान आत्मानी वार्ता ज छे, माटे आ समजवामां होंश अने उत्साह आववो
जोईए; पूर्वे अनंतकाळमां आत्मानी समजण करी नथी तेथी शरूआतमां नवुं लागे पण रुचि अने उल्लासथी
समजवा मागे तो बधुं समजाय तेम छे. मारे मारा आत्मानुं हित करवुं छे–एम जेने अंतरमां दरकार जागे तेनी
बुद्धि आत्मानी समजण तरफ वळ्‌या विना रहे नहि.
* ‘प...द्म...पु...रा...ण! ’ *
कोई कहे छे के आना करतां पद्मपुराण सहेलुं लागे छे.–पण अरे भाई! आ पण आत्मानुं पद्मपुराण ज
वंचाय छे. ‘पद्म’ एटले राम; आ रामचंद्रजी केवी रीते मोक्ष पाम्या तेनुं पुराण चाले छे. रामचंद्रजी पण अंतरमां
पोताना भूतार्थस्वभावनी द्रष्टिथी ज मुक्ति पाम्या छे. आ आत्माराम पोताना स्वभावने भूलीने भववनमां
अनादिथी केम रखडयो अने हवे ते भवरूपी वनवास छोडीने पाछो स्वभाव–घरमां केम अवाय तेनी आ वात छे.
‘आत्मस्वरूपमां रमे ते राम’–आत्माना शुद्ध स्वभावने द्रष्टिमां लईने तेमां रमणता करे ते जीव रामचंद्रजीनी
माफक मुक्ति पामे छे, ने तेनुं आ पुराण छे.
(–आ प्रवचननो बीजो भाग बाकी छे ते हवे पछी अपाशे.)
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आत्मानी गरज
जेने अंतरमां आत्मानी गरज थई होय, सम्यग्दर्शन प्रगट करवानी
चाहना जागी होय तेवो जीव चैतन्यने पकडवा माटे एकांतमां अंतर्मंथन करे छे के
अहो! चैतन्यवस्तुनो महिमा कोई अपूर्व छे, एनी निर्विकल्प प्रतीतिने कोई
रागनुं के निमित्तनुं अवलंबन नथी; शुभभावो अनंतवार कर्या छतां चैतन्यवस्तु
लक्षमां न आवी, तो ते रागथी पार चैतन्यवस्तु कोई अंतरनी अपूर्व चीज छे,
तेनी प्रतीत पण अपूर्व अंतर्मुख प्रयत्नथी थाय छे.–आम चैतन्यवस्तुने
पकडवानो अंतर्मुख उद्यम ते सम्यग्दर्शननो उपाय छे.
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ः ६२ः आत्मधर्मः १२३