Atmadharma magazine - Ank 123
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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ते विपरीत मतनी ज पुष्टि करे छे.
* जैनदर्शन एटले शुं? *
जुओ, जेणे धर्म करवो होय–आत्मानुं अपूर्व हित करवुं होय तेणे आ वात खास समजवा जेवी छे.
दिगंबर जैनधर्म ए कोई वाडो के संप्रदाय नथी पण यथार्थ वस्तुस्थिति छे. अनादिथी सर्वज्ञ भगवंतो ते जाणता
आव्या छे. तीर्थंकरो दिव्यध्वनिथी कहेता आव्या छे अने गणधरो संतो ते झीलता आव्या छे. धरसेन, पुष्पदंत,
भूतबलि, कुंदकुंद, समन्तभद्र, अकलंक, अमृतचंद्र वगेरे आचार्य भगवंतोए ए ज वात करी छे, अने ते ज अहीं
कहेवाय छे. आ ज जैनदर्शन छे. अत्यारे तो अज्ञानीओ ‘जैनदर्शन’ ना नामे अनेक वातो करे छे अने लेखो लखे
छे, पण ते मोटा भागे जैनदर्शनथी विपरीत होय छे. जैनदर्शन शुं चीज छे ते वात घणा लोकोए तो सांभळी पण
नथी. साची वातनुं श्रवण पण अत्यारे लोकोने बहु दुर्लभ थई पडयुं छे. निमित्तना आश्रयथी अने रागथी धर्म
थवानुं जे मनावता होय ते जैनदर्शनथी विपरीत छे, जैनधर्मनी तेने खबर नथी, तेथी ते खरेखर जैन नथी.
* जैन कोने कहेवो? *
आत्माना शुद्ध ज्ञानानंद स्वभावने विकारथी भिन्नपणे जे अनुभवे ते सम्यग्द्रष्टि ज खरा जैन छे. राग ते
ज हुं छुं, रागथी मने धर्म थशे, एम मानीने जे पोताना आत्माने रागवाळो अशुद्ध ज अनुभवे छे ने रागरहित
भूतार्थ शुद्ध आत्माने जाणतो नथी ते जीव व्यवहारमां ज विमोहित मिथ्याद्रष्टि छे, तेने भगवान खरेखर जैन
कहेता नथी.
* जे समजवाथी हित थाय एवुं अपूर्व सत्य *
निमित्तने लीधे नैमित्तिक थाय एम माननार पण पराधीन द्रष्टिवाळो मिथ्याद्रष्टि छे. अरे! अखंड आत्मामां
ज्ञानदर्शन–चारित्रना भेद पाडीने अनुभव करे ने ते भेदना आश्रयथी लाभ माने तो तेने पण सम्यग्दर्शन थतुं नथी,
ते पण व्यवहारमां ज विमोहित छे. भूतार्थ स्वभावमां एकाकारद्रष्टि करवी ते ज सम्यग्दर्शननी रीत छे, ते ज
सत्यद्रष्टि छे, अने ते ज कल्याणनो मार्ग छे. जे जीव आवी वातनुं श्रवण करवा आव्यो छे ते कंईक अपूर्व सत्य
समजवा मागे छे, जे समजवाथी पोतानुं हित थाय एवुं सत्य समजवा मागे छे;–तो एवुं सत्य शुं छे के जे समजवाथी
हित थाय? ते अहीं बतावे छे. त्रिकाळी ज्ञानानंद अभेद आत्मा ते ज सत्य भूतार्थ छे. ते अभेदरूप आत्मामां
ज्ञानादि गुणोना भेद पाडवा ते पण अभूतार्थ छे, राग पण अभूतार्थ छे अने निमित्त वगेरे पर वस्तुनो तो
आत्मामां अभाव ज छे. एकाकार सहज ज्ञायकस्वभावनी सन्मुखताथी ज निर्विकल्प अनुभव थाय छे, तेथी ते ज
भूतार्थ छे, ते ज परमार्थ सत्य छे; ए सिवाय भेदनी, रागनी के परनी सन्मुखताथी तो रागनी उत्पत्ति थाय छे तेथी
ते अभूतार्थ छे, तेनी सामे जोवाथी कल्याण थतुं नथी.
* कोनी सामे जोवाथी कल्याण थाय? *
जुओ, कोनी सामे जोवाथी कल्याण थाय तेनी आ वात छे. शुद्धनयरूपी आंखथी आत्माना भूतार्थ
स्वभावने देखवो ते ज सम्यग्दर्शन छे. अभेद स्वभावरूप कारणपरमात्मानी सन्मुख एकाग्र थईने तेना अनुभव
अने प्रतीति करवी ते ज कल्याण छे. हे भाई! परनी सामे जोये तो तारुं कल्याण थाय तेम नथी, ने तारा आत्मामां
पण भेदनी सामे जोये तारुं कल्याण नहि थाय. आखो आत्मा एक समयमां परिपूर्ण जेवो छे तेवो अखंड प्रतीतमां
लेवो ते ज कल्याणनुं मूळ छे. ‘हुं ज्ञायक छुं’ एवो विकल्प ते पण राग छे; अहीं ते विकल्पनी वात नथी, पण
ज्ञानने अंतरमां वाळीने विकल्परहित शुद्धनयथी आत्माना भूतार्थ स्वभावने लक्षमां लईने तेना आनंदनो
अनुभव करवो ते सम्यग्दर्शन छे.
* आत्मानी साची बुद्धि *
भूतार्थदर्शीओ एटले के सम्यग्द्रष्टिओ पोतानी बुद्धिथी नाखेला शुद्धनय अनुसार बोध थवा मात्रथी
उपजेला आत्म–कर्मना विवेकपणाथी, पोताना पुरुषार्थद्वारा आविर्भूत करवामां आवेला सहज एक
ज्ञायकस्वभावपणे आत्माने अनुभवे छे. शुद्धनयथी आत्माना शुद्ध स्वरूपनो बोध करवो ते ज साची बुद्धि छे, तेने
ज अहीं आत्मानी बुद्धि कही छे. परावलंबनथी छूटीने अने रागथी जुदुं पडीने जे ज्ञान आत्माना भूतार्थ
स्वभावमां वळ्‌युं ते ज्ञानने ज ‘पोतानी बुद्धि’ कही छे, एकला पर तरफना उघाडने अहीं ‘पोतानी बुद्धि’ कहेता
नथी. खरी बुद्धि ज तेने कहेवाय के जे अंतर्मुख थईने पोताना अखंड
पोषः २४८०
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