Atmadharma magazine - Ank 123
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 21

background image
महा कल्याणकारी सम्यग्दर्शन थवानी रीत
‘[भूयत्थमस्सिदो खलु सम्माइट्ठी हवइ जीवो]’
तीर्थधाम सोनगढमां मानस्तंभ–प्रतिष्ठा–महोत्सव प्रसंगे,
वीर सं. २४७९ना चैत्र सुद चोथना प्रवचनमांथी – (१)
**********************************
जेणे आत्मानुं अपूर्व हित करवुं होय तेणे आ वात खास समजवा जेवी
छे. दिगंबर जैनधर्म ए कोई वाडो के संप्रदाय नथी पण यथार्थ वस्तुस्थिति
छे. अनादिथी सर्वज्ञ भगवंतो ते जाणता आव्या छे, तीर्थंकरो दिव्यध्वनिथी
कहेता आव्या छे अने गणधरो–संतो ते झीलता आव्या छे. जैनदर्शन शुं
चीज छे ते वात घणा लोकोए तो सांभळी पण नथी....सत्य वातनुं श्रवण
पण अत्यारे लोकोने बहु दुर्लभ थई पडयुं छे. अपूर्व कल्याणकारी सम्य–
ग्दर्शन थवानी रीत शुं छे–एटले के साचा जैन बनवानी रीत शुं छे?–
ते आ प्रवचनमां पू. गुरुदेवश्रीए समजाव्युं छे.
व्यवहारनयने परमार्थनो प्रतिपादक कह्यो तोपण ते अंगीकार करवा योग्य केम नथी–एम शिष्ये पूछयुं हतुं
तेनो उत्तर चाले छे; तेमां आचार्यदेव कहे छे के व्यवहारनय अभूतार्थ छे. ते अशुद्ध आत्माने देखाडनारो छे, तेना
अवलंबनथी शुद्ध आत्मानो अनुभव थतो नथी, माटे जेने धर्म करवो छे एवा जीवोने ते व्यवहारनय आश्रय करवा
जेवो नथी, पण भूतार्थ स्वभावनो ज आश्रय करवा जेवो छे; ते भूतार्थ स्वभावना आश्रये ज शुद्ध आत्मानो
अनुभव अने सम्यग्दर्शन थाय छे.
* सम्यग्दर्शननी एक ज रीत *
अनादिथी अज्ञानी जीवो रागथी अने व्यवहारना अवलंबनथी लाभ मानी रह्या छे, व्यवहारनो आश्रय
तो अनादिथी तेओ करी ज रह्या छे पण तेना आश्रये किंचित् कल्याण थयुं नथी. कल्याण कहो के सम्यग्दर्शन कहो ते
अभेद स्वभावना आश्रये ज थाय छे. रागथी जराक छूटो पडीने, अंतर्मुख थईने ज्ञानानंद स्वभावने पकडतां
सम्यग्दर्शन थयुं, त्यां शुभरागने व्यवहार कहेवाय छे; पण राग करतां करतां ते रागना आश्रये सम्यग्दर्शन थाय–
एम कदी पण बनतुं नथी. ‘भूतार्थ स्वभावनुं अवलंबन’ ए एक ज सम्यग्दर्शननी रीत छे.
* अनादिथी चाली रहेलो सनातन दिगंबर जैन पंथ *
अनादिथी आवो एक ज प्रकारनो सनातन दिगंबर जैन पंथ चाली रह्यो छे, ते ज परम सत्य छे. तेनो
विरोध करीने कोई एम कहे के ‘पहेलो व्यवहार ने पछी निश्चय’–तो ते जैन मार्गने जाणता नथी. मोक्षमार्गमां
पहेलो व्यवहार अने पछी निश्चय एटले के व्यवहार करतां करतां निश्चय मोक्षमार्ग प्रगटी जशे,–एम मानवुं ते तो
व्यवहारमूढता छे. दिगंबर संप्रदायमां रहीने पण जे एम माने छे के व्यवहार करतां करतां तेनाथी निश्चय प्रगटी
जशे तो ते पण विपरीत मान्यतानी पुष्टि करनारो मिथ्याद्रष्टि छे, दिगंबरमतनी तेने खबर नथी. दिगंबरनुं नाम
धरावीने पण जे जीव व्यवहार उपर जोर आपे छे–व्यवहारना अवलंबनथी लाभ थवानुं माने छे–ते जीव खरेखर
दिगंबर सिद्धांतने मानतो नथी पण दिगंबरनो विरोधी छे, दिगंबर नाम धरावीने पण
ः ६०ः
आत्मधर्मः १२३