छे. दिगंबर जैनधर्म ए कोई वाडो के संप्रदाय नथी पण यथार्थ वस्तुस्थिति
छे. अनादिथी सर्वज्ञ भगवंतो ते जाणता आव्या छे, तीर्थंकरो दिव्यध्वनिथी
कहेता आव्या छे अने गणधरो–संतो ते झीलता आव्या छे. जैनदर्शन शुं
चीज छे ते वात घणा लोकोए तो सांभळी पण नथी....सत्य वातनुं श्रवण
पण अत्यारे लोकोने बहु दुर्लभ थई पडयुं छे. अपूर्व कल्याणकारी सम्य–
ग्दर्शन थवानी रीत शुं छे–एटले के साचा जैन बनवानी रीत शुं छे?–
अवलंबनथी शुद्ध आत्मानो अनुभव थतो नथी, माटे जेने धर्म करवो छे एवा जीवोने ते व्यवहारनय आश्रय करवा
जेवो नथी, पण भूतार्थ स्वभावनो ज आश्रय करवा जेवो छे; ते भूतार्थ स्वभावना आश्रये ज शुद्ध आत्मानो
अनुभव अने सम्यग्दर्शन थाय छे.
अभेद स्वभावना आश्रये ज थाय छे. रागथी जराक छूटो पडीने, अंतर्मुख थईने ज्ञानानंद स्वभावने पकडतां
सम्यग्दर्शन थयुं, त्यां शुभरागने व्यवहार कहेवाय छे; पण राग करतां करतां ते रागना आश्रये सम्यग्दर्शन थाय–
एम कदी पण बनतुं नथी. ‘भूतार्थ स्वभावनुं अवलंबन’ ए एक ज सम्यग्दर्शननी रीत छे.
पहेलो व्यवहार अने पछी निश्चय एटले के व्यवहार करतां करतां निश्चय मोक्षमार्ग प्रगटी जशे,–एम मानवुं ते तो
व्यवहारमूढता छे. दिगंबर संप्रदायमां रहीने पण जे एम माने छे के व्यवहार करतां करतां तेनाथी निश्चय प्रगटी
जशे तो ते पण विपरीत मान्यतानी पुष्टि करनारो मिथ्याद्रष्टि छे, दिगंबरमतनी तेने खबर नथी. दिगंबरनुं नाम
धरावीने पण जे जीव व्यवहार उपर जोर आपे छे–व्यवहारना अवलंबनथी लाभ थवानुं माने छे–ते जीव खरेखर
दिगंबर सिद्धांतने मानतो नथी पण दिगंबरनो विरोधी छे, दिगंबर नाम धरावीने पण
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