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एक तो कर्मना उदयथी विकार थाय, अने बीजुं व्यवहार करतां करतां निश्चय थाय,–
आवी मान्यतावाळा जीवना अभिप्रायमां मोटी भूल छे,–तेओ आत्माथी नहि पण जडथी ज
मोक्ष थवानुं माननारा छे; कई रीते? ते अहीं कहेवाय छे.
(१) प्रथम तो जडकर्मना उदयथी शुभाशुभ विकार थाय छे एम मान्युं एटले
व्यवहाररत्नत्रयना शुभपरिणाम पण जडथी थवानुं मान्युं; अने–
(२) ते व्यवहाररत्नत्रयथी निश्चयरत्नत्रय थाय–एम मान्युं;
आ रीते –
(१) जडकर्मना उदयथी व्यवहाररत्नत्रय अने
(२) व्यवहाररत्नत्रयथी निश्चयरत्नत्रय, तथा ते निश्चयरत्नत्रय मोक्षनुं कारण–एम
मान्युं.
–एटले ते अज्ञानीना अभिप्रायमां मोक्ष माटे आत्मानुं अवलंबन लेवानुं तो कयांय
आव्युं ज नहि, जडथी ज मोक्ष थवानुं आव्युं!
मोक्षनुं कारण निश्चयरत्नत्रय;
ते निश्चयरत्नत्रय व्यवहाररत्नत्रयना आश्रये थाय; अने व्यवहाररत्नत्रय जडकर्मना
उदयने लीधे थाय;–आ रीते अज्ञानी कर्मने ज देखे छे, पण आत्माने नथी देखतो, तेथी तेने कदी
मोक्षमार्ग प्रगटतो नथी.
–तो यथार्थ मोक्षमार्ग कई रीते छे?
ज्ञानी जाणे छे के मारा आत्मस्वभावना अवलंबने ज निश्चय सम्यक्त्व–ज्ञान–चारित्ररूप
मोक्षमार्ग छे; निश्चयरत्नत्रयरूप मोक्षमार्गमां मारा स्वभाव सिवाय बीजा कोईनुं अवलंबन
नथी. स्वभावना अवलंबने निश्चयरत्नत्रय प्रगट कर्या त्यां व्यवहाररत्नत्रयने मात्र उपचारथी
तेनुं कारण कह्युं.
तथा ते व्यवहाररत्नत्रय पण कर्मना उदयने लीधे थता नथी, पण मारी साधकपर्यायमां ते
प्रकारनी लायकातथी थाय छे, कर्मनो उदय तेमां मात्र निमित्त छे.
आ रीते धर्मीजीव स्वाश्रित–मोक्षमार्ग जाणे छे. जडने कारणे विकार नहि ने विकारने
कारणे स्वभाव नहि,–आम जाणीने धर्मीजीव स्वभावना आश्रये मोक्षमार्गने साधे छे.
(–प्रवचनमांथी)
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पोषः २४८० ः प९ः