Atmadharma magazine - Ank 124
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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“सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः”
वर्ष अगियारमुं : संपादक : महा
अंक चोथो रामजी माणेकचंद दोशी सं. २०१०
आत्मानो प्रयत्न
(चर्चामांथी)
शास्त्रो कहे छे के आत्मानो प्रयत्न परमां काम न आवे; पण तेनो
अर्थ एम नथी के पोतानुं सम्यग्दर्शन पण प्रयत्न विना थई जाय छे!
अज्ञानी जीव ऊंधुं समजे छे. जेने आत्मानुं हित करवुं होय तेणे पोताना
ज्ञानानंदस्वरूप आत्माने जाणवानो उद्यम करवो अने आत्माने जाण्या पछी
तेमां एकाग्रतानो उद्यम करवो. आ उपायथी ज अहित टळीने हित थाय छे.
आत्माना अंतरंग प्रयत्न विना कदी पण सम्यग्दर्शन थतुं नथी. जेम परमां
आत्मानो प्रयत्न नथी तेम पोताना सम्यग्दर्शनमां पण आत्मानो प्रयत्न
नथी, –एम जे माने तेणे खरेखर आत्माने जाण्यो नथी तेमज भगवानना
उपदेशनी पण तेने खबर नथी. “सर्वज्ञदेवे जोयुं छे त्यारे सम्यग्दर्शन थशे”
–एम कहे तो तेमां पण सर्वज्ञना निर्णयनो प्रयत्न आवी ज जाय छे; अने
सर्वज्ञनो यथार्थ निर्णय करतां तेमां पोताना ज्ञानस्वभावना निर्णयनो
प्रयत्न भेगो आवी ज जाय छे. आत्मानी ऊंधी के सवळी एक पण पर्याय
पोताना ते प्रकारना प्रयत्न वगर थती नथी, दरेक पर्यायमां पुरुषार्थनुं
परिणमन पण भेगुं छे. –पू गुरुदेव
वार्षिक लवाजम [१२४] छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
जैन स्वाध्याय मंदिर : सोनगढ (सौराष्ट्र)