Atmadharma magazine - Ank 124
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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ATMADHARMA Regd. No. B. 4787
‘जाणनर’ न
जाणवो
जाणनार विना जाण्युं कोणे?
आ शरीर, मकान वगेरे पर वस्तु जणाय छे,
पण जाण्युं कोणे? ते जाणनार कोण छे तेने जाण्या
विना परनुं ज्ञान यथार्थ थाय नहि. पर जणाय छे,
तेनो जाणनार हुं छुं एम जो जाणनार तत्त्वनो
निर्णय करे तो जाणपणुं एकला परमां न रोकातां स्व
तरफ वळे. हुं पोते जाणनार कोण छुं? बधुंय जणाय
छे तेनो जाणनार पोते केवो छे? –एम स्वतत्त्वनो
निर्णय जोईए. जाणनार पोते कोण छे ते जाण्या
विना जाणपणुं साचुं थाय नहि. हुं जाणनार छुं एवो
पोताना स्वभावनो निर्णय करे तो ते परनो पण
जाणनार रहे छे. परनुं करवामां के रागमां ते अटकतो
नथी एटले तेनुं ज्ञान स्व तरफ वळे छे. जाणनार
तत्त्वनी जेने खबर नथी ते परने जाणतां त्यां ज
अटके छे एटले आत्मा तरफ तेनुं ज्ञान वळतुं नथी.
माटे बधायने जाणनार पोते कोण छे तेनी ओळखाण
करवी जोईए.
(वीर सं. २४८०, मागशर
सुद १० ना प्रवचनमांथी)
प्रकाशक :– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी, वल्लभविद्यानगर (गुजरात)
मुद्रक :– जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालय : वल्लभविद्यानगर (गुजरात)