Atmadharma magazine - Ank 125
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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ATAMDHARMA Regd. No. B.4787
* पाटनगरमां पूज्य गुरुदेव *
अनेकविध प्रभावनाना मंगल प्रसंगो निमित्ते सौराष्ट्रमां विहार करता करता पू.
गुरुदेव पोष वद १३ ना रोज पाटनगर–राजकोटमां पधार्या हता. राजकोटना
भक्तजनोए उल्लासपूर्वक पूज्य गुरुदेवनुं भव्य स्वागत कर्युं हतुं. आ प्रसंगे प्रवचन माटे
एक भव्य सुशोभित मंडपनी रचना करी हती तेमज जिनमंदिरने सुंदर शणगार्युं हतुं.
राजकोटनुं जिनमंदिर खूब ज भव्य छे अने तेमां बिराजमान जिनबिंब घणा ज
भाववाही छे, फरीफरीने तेमने नीरख्या ज करीए एवुं थाय छे.
राजकोटमां पू. गुरुदेव पांच दिवस रह्या हता. ते दरमियान शिक्षित लोको पण
मोटी संख्यामां पू. गुरुदेवना प्रवचननो लाभ लेता हता. वडाप्रधान श्री उछरंगराय ढेबर
वगेरेए पण पू. गुरुदेवना प्रवचननो तेमज चर्चानो लाभ लीधो हतो. राजकोटमां एक
दिवसे श्री जिनेन्द्रभगवाननी रथयात्रा नीकळी हती. राजकोटथी माह सुद त्रीजना रोज पू.
गुरुदेवे विहार कर्यो. विहार पहेलांं सवारमां सीमंधर भगवानना दर्शन करवा पधार्या
त्यारे ए उपशांत जिनमुद्राने घणो वखत सुधी तो गुरुदेव नीरखी ज रह्या..... पछी
अंतरमां भक्तिनो उमळको आवतां पू. गुरुदेव नीचेनुं भावभीनुं स्तवन गवडाव्युं हतुं–
[राग : भरथरी]
[] धन्य दिवस धन्य आजनो, धन धन घडी तेह;
धन्य समय प्रभु माहरो, दरिशण दीठुं आज.....
.... मन लाग्युं रे मारा नाथजी.
[] सुंदर मूरत दीठी ताहरी, केटले दिवसे आज;
नयन पावन थया माहरा, पाप तिमिर गयां भाज....
मन लाग्युं रे मारा नाथजी.
[] साचो भक्त जाणीने, करुणा करो मनमांह्य;
सेवक पर हित आणीने, धरी हृदय उमाह....
मन लाग्युं रे मारा नाथजी.
[] निर्मळ सेवा आपीए, भवना बुझे रे ताप;
हवे दरिशण विरह मत करो, मेटो मनने संताप....
मन लाग्युं रे मारा नाथजी.
[] घणुं घणुं शुं कहीए तुमने, तुमे चतुर सुजाण;
मुज मनवांछित पूरजो, व्हाला सीमंधरनाथ....
मन लाग्युं रे मारा नाथजी....
प्रकाशक :– श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट वती जमनादास माणेकचंद रवाणी. वल्लभविद्यानगर (गुजरात)
मुद्रक :– जमनादास माणेकचंद रवाणी, अनेकान्त मुद्रणालय : वल्लभविद्यानगर (गुजरात)