Atmadharma magazine - Ank 126
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २०१० : आत्मधर्म–१२६ : १०७ :
पोरबंदरमां पंचकल्याणक–प्रतिष्ठा–महोत्सव
जिनेन्द्र शासनना परम प्रभावक पू. गुरुदेवना पुनित प्रतापे सौराष्ट्रना भक्तजनोने
ठेर–ठेर जिनेन्द्र भगवंतोनो भेटो थई रह्यो छे, अने भगवानना पंचकल्याणकना अद्भुत
महोत्सव ठेरठेर जोवा मळे छे. आ वर्षमां पोरबंदर, मोरबी, अने वांकानेरमां पंचकल्याणक–
प्रतिष्ठा–महोत्सवो तेमज बीजा अनेक स्थळोए वेदी–प्रतिष्ठा–महोत्सव निमित्ते पू. गुरुदेव
सौराष्ट्रमां मंगल–विहार करी रह्या छे, अने साथे साथे अनेक गामोमां नवा जिनमंदिरोना
बीजडां रोपता जाय छे.
पोरबंदरमां पू. गुरुदेवनी मंगलकारी छायामां शेठ श्री नेमिदासभाईए उल्लासपूर्वक
पंचकल्याणक–प्रतिष्ठा–महोत्सव कराव्यो हतो. आ महोत्सवनी शरूआतना समाचार गया
अंकमां आवी गया छे, बीजा विशेष समाचार अहीं आपवामां आव्या छे–
महा वद ११ ना रोज सवारे “जलयात्रा” विधि थई हती, जलयात्रामां जुलूसमां पू.
बेनश्री–बेन सुवर्णकलश लईने चालता हता ते द्रश्य घणुं शोभतुं हतुं. जलयात्रा बाद ते पवित्र
जलथी जिनमंदिरमां पू. बेनश्री बेनना मंगल हस्ते वेदी शुद्धि थई हती.
सांजे वीस विहरमान तीर्थंकर भगवंतोनुं पूज्य पूर्ण थयुं हतुं, अने श्री जिनेन्द्र देवनो
अभिषेक थयो हतो.
महा वद १२ ना रोज सवारमां “आचार्य–अनुज्ञा” विधि थई हती, तेमां प्रतिष्ठा
करावनार शेठश्री नेमिदासभाई वगेरे पू. गुरुदेवनी स्तुति करीने, पंचकल्याणक प्रतिष्ठा
महोत्सव माटे आज्ञा मागी हती, अने पू. गुरुदेवे ते माटे आज्ञा आपीने मांगळिक संभळाव्युं
हतुं. त्यारबाद “नांदि विधान” थयुं हतुं, पछी “ईन्द्रप्रतिष्ठा” थई हती, अने पू. गुरुदेवना
प्रवचन बाद ईन्द्रप्रतिष्ठानुं जुलूस नीकळ्‌युं हतुं. त्यारबाद यागमंडलविधान पूजननो प्रारंभ
थयो हतो.
रात्रे गर्भकल्याणकनी पूर्वक्रियानुं द्रश्य थयुं हतुं. सौथी प्रथम कुमारिका बहेनोए
मंगलाचरण रूपे विधिनायक श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्रनी स्तुति करी हती. त्यारबाद ईन्द्रसभानो
देखाव थयो हतो. सौधर्मईन्द्र अवधिज्ञानथी जाणे छे के छ महिना बाद भगवान पार्श्वनाथ
वामादेवी माताना गर्भमां आववाना छे. तेथी कुबेरने रत्नवृष्टि करवानी आज्ञा आपे छे
तेमज आठ देवीओने भगवानना मातानी सेवा माटे मोकले छे, अने ईन्द्रो वस्त्राभूषणनी
भेट लईने माता–पिता पासे आवे छे, देवीओ मातानी सेवा करे छे, माताजी सोळ मंगल
स्वप्नो देखे छे–ईत्यादि सुंदर द्रश्यो थया हता. आ उपरांत श्री पार्श्वनाथ भगवानना पूर्व
भवोनुं द्रश्य पण संक्षेपमां बताववामां आव्युं हतुं.
महा वद १३ ना रोज सवारमां गर्भकल्याणकनुं द्रश्य थयुं हतुं. देवीओ वामादेवी मातानी
सेवा करे छे, माताजी सवारमां ऊठीने मंगलस्तुति करे छे अने पछी राज्यसभामां जईने १६
स्वप्ननी वात करे छे, श्री अश्वसेन महाराजा
(अनुसंधान पाना नं. १०८ उपर)