Atmadharma magazine - Ank 126
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: १०८ : आत्मधर्म–१२६ : चैत्र : २०१० :
धर्मनुं पहेलुं सोपान
[जामनगर शहेरमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन]
(वीर सं. २४८०, फागण वद २)
हे भाई! आत्माना ऊर्ध्वस्वभावनी श्रेणीए चडवानुं एटले के मुक्तिनुं
पहेलुं सोपान तो सम्यग्दर्शन ज छे. पुण्य ते धर्मनुं सोपान नथी.
जुओ, आ मनुष्य अवतार पामीने आत्मानुं हित केम थाय तेनी आ वात छे.
‘कहो महात्मा, सुनो आत्मा, कहुं वातमां वीतक खरी,
संसार सागर दुःख भर्यामां अवतर्यो कर्मे करी;
ज्यां कष्ट कोटी असत्य भरपुर पाप पमार प्राणीनां,
पामेल मानव जींदगीनी कदर अंतर आणी ना.’
संसारमां भवभ्रमण करतां अनंतकाळे आ मनुष्यदेह मळ्‌यो छे, तेमां आत्मानी समजण करीने भवनो
अंत लाववानो आ अपूर्व समय छे. आवो मनुष्यभव पामीने पण जो चैतन्यनुं भान न करे अने देहादिना
लालन–पालनमां तथा पुण्य–पापनी रुचिमां जीवन पूरुं करे तो मनुष्यदेह एळे गुमाववा जेवुं छे.
अनादिकाळथी जीव सुखने माटे झांवा नाखी रह्यो छे पण हजी सुधी तेने सुखनी प्राप्ति थई नथी केमके
सुखनो साचो उपाय तेणे जाण्यो नथी. चार गतिमां देह–लक्ष्मी वगेरेना संयोग अनंतवार मळ्‌या, अरे!
स्वर्गना वैभव पण अनंतवार मळ्‌या, पण तेनाथी सुखनी भूख भांगी
(अनुसंधान पाना नं. १०९
उपर)
(पाना नं. १०७ थी चालु)
ते स्वप्नोना उत्तमफळनुं वर्णन करे छे. आठ कुमारिका देवीओ माताने तत्त्वचर्चाना प्रश्रो पूछे
छे अने माताजी विद्वत्तापूर्वक तेना उत्तर आपे छे, ईत्यादि द्रश्यो थया हतां.
बपोरे पू. गुरुदेवना प्रवचन बाद जिनमंदिर शुद्धि, वेदीशुद्धि, ध्वजशुद्धि अने
कलशशुद्धिनी विधि थई हती. ईन्द्र–ईन्द्राणी तथा देवीओए शुद्धि कर्या बाद अंतिम शुद्धिनी
क्रिया तेमज स्वस्तिक स्थापन वगेरे मंगल क्रियाओ पू. बेनश्रीबेनजीना पवित्र हस्ते थई हती.
ए मंगल विधि जोईने भक्तजनोने घणो हर्ष थयो हतो. रात्रे “सीताजीनो त्याग अने
अग्निपरीक्षा” नो संवाद थयो हतो.
माह वद १४ ना रोज भगवानना जन्म–कल्याणकनो महोत्सव घणा उत्साहथी सुंदर
रीते थयो हतो. सवारमां, वामादेवी मातानी कुंखे श्री पार्श्वनाथ भगवाननो जन्म थवानी
मंगलवधाई देवीओए आपी हती. ईन्द्रसभामां भगवानना जन्मनी खबर पडतां ज ईन्द्रोए
प्रभुजीने वंदना करी हती, अने तरत ज सर्वे देवो साथे ऐरावत हाथी उपर बेसीने जन्मोत्सव
उजववा आव्या हता, आवीने भगवानना जन्मधाम–बनारसी नगरीनी त्रण प्रदक्षिणा करी
हती अने पछी ईन्द्राणीए बालप्रभुने तेडीने हर्षपूर्वक ईन्द्रना हाथमां आप्या हतां, पछी हाथी
उपर बिराजमान करीने प्रभुजीने मेरु पर्वत उपर लई जवानुं भव्य जुलूस नीकळ्‌युं हतुं.
अजमेरनी भजनमंडळी पण आवी होवाथी प्रसंग घणो उल्लासभर्यो हतो. जन्माभिषेकना
आखा जुलूसमां पू. गुरुदेव पण साथे पधार्या हता. मेरु पर्वत पासे पहोंचता त्यां हाथीए
त्रण प्रदक्षिणा करी ने पछी पांडुक शिला उपर प्रभुजीने बिराजमान कर्या, अने घणी भक्ति
पूर्वक श्री पार्श्वनाथ जिनेन्द्रनो अभिषेक थयो. अभिषेक वखते भगवानने नीरखतां भक्तोने
एम थतुं हतुं के “अहो! नाथ धन्य आपनो अवतार! धन्य आपनो जन्म, के जे जन्ममां
आप आत्माना पूर्णहितने साधशो ने जगतना अनेक जीवोने (अनुसंधान माटे जुओ पानुं ११०)