Atmadharma magazine - Ank 127
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष अगियारमुं, अंक सातमो, वैशाख, सं. २०१० (वार्षिक लवाजम ३–०–०)
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प्रभु! तें आत्माना भान वगर चारे गतिना अवतार अनंतवार
कर्या छे, पण भव अने भवना कारण वगरनो तारो ज्ञानानंद स्वभाव
छे, ते स्वभावनी द्रष्टि कर तो भवनो अंत आवे; आ सिवाय बहारना
कारणथी भवनो अंत आवे नहि. माटे जेने भवनो अंत लाववो होय ने
आत्मानो अतीन्द्रिय आनंद प्रगट करवो होय तेणे अंतरना धु्रव
चिदानंद स्वभावने लक्षमां लईने तेनी रुचि अने बहुमान करवा जेवुं
छे; तेनी मुख्यता करीने तेनुं अवलंबन करवाथी धर्म थाय छे ने
भवभ्रमणनो अंत आवीने पूर्णानंदरूप मोक्षदशा प्रगटे छे.