कारणथी भवनो अंत आवे नहि. माटे जेने भवनो अंत लाववो होय ने
आत्मानो अतीन्द्रिय आनंद प्रगट करवो होय तेणे अंतरना धु्रव
छे; तेनी मुख्यता करीने तेनुं अवलंबन करवाथी धर्म थाय छे ने
भवभ्रमणनो अंत आवीने पूर्णानंदरूप मोक्षदशा प्रगटे छे.
Atmadharma magazine - Ank 127
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).
PDF/HTML Page 2 of 21