Atmadharma magazine - Ank 128
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष अगियारमुं, अंक आठमो, जेठ, सं. २०१० (वार्षिक लवाजम ३–०–०)
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अपूर्व आत्मशांति
भगवान! अनादिकाळमां कदी नहि प्रगटेल एवी अपूर्व शांतिनुं वेदन
केम प्रगटे... सम्यग्दर्शन केम थाय तेनी आ वात छे. भाई, अनंतकाळना
अजाण्या मुक्तिना पंथ....ते सत्समागम वगर समजाय तेवा नथी. तारा
चैतन्यमां जीवनशक्ति पडी छे....आनंदना निधान तारी शक्तिमां भर्यां छे,
तेनी सन्मुख थईने एकवार तेनी प्रतीत कर, तो अपूर्व अतीन्द्रिय शांतिनो
अंश प्रगटे. कोई बहारनी क्रियाना कारणे, के अंदरना शुभ परिणाम थाय
तेना अवलंबने आत्मानी अपूर्व शांति प्रगटे एम बनतुं नथी; तारा ज्ञानने
अंतर्मुख करीने चिदानंद स्वभावने जाणतां ते अपूर्व शांति प्रगटे छे.