Atmadharma magazine - Ank 130
(Year 11 - Vir Nirvana Samvat 2480, A.D. 1954)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण: २०१०: आत्मधर्म–१३० : २०३:
भाई, तारा ज्ञानमां ‘आ पर छे, आ राग छे’ एम परनो ने रागनो ख्याल तो आवे छे ने? तो तेनो
ख्याल करनार ‘हुं पोते ज्ञान छुं’ एम पोताना ज्ञाननो ख्याल केम नथी करतो? ज्ञानने बहारमां वाळीने परने
जाणे छे, तो ज्ञानने अंतरमां वाळीने पोताने केम नथी जाणतो? अज्ञानी जीव परने के रागने जाणतां तेमां ज
तन्मयपणुं मानी ल्ये छे, पण जुदुं ज्ञान तेना लक्षमां आवतुं नथी तेथी ज ते संसारमां रखडे छे. तेने बदले,
परने अने रागने जाणनार हुं ज्ञानस्वरूप छुं, मारुं ज्ञान परथी ने रागथी जुदुं ज छे एम निर्णय करीने,
ज्ञानतत्त्वमां ज तन्मय थईने तेने पोतानुं ज्ञेय बनाववुं ते अपूर्वधर्म छे ने ते मुक्तिनो मार्ग छे. बस!
बहारमां ज्ञाननुं ध्येय कर्युं ते संसार छे, ने अंतरमां चैतन्यतत्त्वने ज्ञाननुं ध्येय कर्युं ते मोक्षमार्ग छे.
आत्मानो चिदानंदस्वभाव सूक्ष्म छे, तेनुं ज्ञान पण सूक्ष्म छे; राग ते स्थूळ छे तेना वडे सूक्ष्म
चैतन्यस्वभाव पकडातो नथी. सूक्ष्म चिदानंद स्वभावने जाणवा माटे अंतरमां ज्ञाननो अपूर्व प्रयत्न जोईए, ते
ज्ञानमां शुभ–विकल्पनुं पण अवलंबन नथी. आत्मानो स्व–पर प्रकाशक स्वभाव छे, तेणे पोताना स्वभाव
साथे ज्ञाननी एकता करीने जाणवुं जोईए, तेने बदले पर साथे ज्ञाननी एक्ता माने छे, तेथी ते पोते पोताने
जाणतो नथी ने अज्ञानने लीधे संसारमां रखडे छे. आत्माना स्वपरप्रकाशक स्वभावमां ज्ञाननी एकता करीने
तेने जाणवो ने तेमां एकाग्र थवुं ते मोक्षनो उपाय छे. आत्मा पोताना स्व–पर प्रकाशक ज्ञान स्वभावथी ज
स्व–परने प्रकाशे छे, पण रागने के परने लईने ते प्रकाशतो नथी. राग वखते तेने जाणता अज्ञानीने एम
लागे छे के आ रागने लीधे मने ज्ञान थाय छे; पण ते राग वखते तेवुं ज ज्ञान पोतानी स्व–परप्रकाशक
शक्तिमांथी खील्युं छे एवी ज्ञानसामर्थ्यनी प्रतीत अज्ञानीने बेसती नथी. दरेक आत्मानो स्व–पर प्रकाशक
स्वभाव होवा छतां अज्ञानीने पोतानो विश्वास बेसतो नथी तेथी तेने स्व–परप्रकाशक ज्ञाननुं कार्य खीलतुं नथी
एटले के सम्यग्ज्ञान थतुं नथी. आत्माना स्व–परप्रकाशक स्वभावनो निर्णय करीने पोते पोताना ज्ञान–
स्वभावने पोतानुं ज्ञेय बनावे तो सम्यग्ज्ञान प्रगटे ने धर्म थाय. राग अने ज्ञाननुं भेदज्ञान थया पछी धर्मी
जीवने रागनुं पण ज्ञान थाय, परंतु तेने ते राग साथे ज्ञाननी एकता थती नथी. रागनुं ज्ञान थाय ते पण
पोताना स्व–परप्रकाशक ज्ञाननो काळ छे–ते काळे ज्ञाननुं तेवुं ज सामर्थ्य खील्युं छे, एम रागना ज्ञान वखते
पण रागथी भिन्न ज्ञानस्वभावने प्रतीतमां राखवो ते धर्म छे. ज्ञानमां राग जणाय, त्यां ज्ञानी तो पोताना
ज्ञाननुं ज सामर्थ्य देखे छे, ने अज्ञानी एकला रागने ज देखे छे. रागना काळे ते रागनुं ज्ञान थाय, माटे रागने
लीधे ते ज्ञान थयुं एम नथी. परने लीधे के रागने लीधे ज्ञान थतुं नथी, पण हुं मारा स्व–परप्रकाशक
ज्ञानस्वभावने लीधे ज जाणुं छुं, मारा ज्ञानमां राग जणाय त्यारे पण ते रागनी अधिकता नथी पण मारा
ज्ञानसामर्थ्यनी ज अधिकता छे, रागथी मारी भिन्नता छे ने ज्ञान साथे मारी एकता छे; आम भेदज्ञान करीने,
पोताना ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थईने तेमां एकता करतां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रना तरंग ऊठे छे, ते
मुक्तिनो मार्ग छे.
–वीर सं. २४८०, मागशर वद १२ ना रोज राजकोट
शहेरमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन. तत्त्वज्ञान तरंगिणी
अध्याय १, श्लोक ९–१०
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
सोनगढमां अषाड वद एकमना रोज वीरशासन
जयंति महोत्सव प्रसंगे भाईश्री छोटालाल रायचंद
खधार (चुडावाळा) तथा तेमनां धर्मपत्नी कान्ताबेन–
ए बंने ए सजोडे आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा पू.
गुरुदेव पासे अंगीकार करी छे; ते माटे तेमने धन्यवाद!