स्वरूप ओळखवुं जोईए
साचो उद्यम
सिद्ध अने संसारी
सिद्ध भगवानना आठ गुणो
सुख अने दुःख शुं छे?
सुरेन्द्रनगरमां वेदी प्रतिष्ठा (समाचार)
सुवर्णपुरी समाचार (कारतक)
सुवर्णपुरी समाचार (पोष)
सुवर्णपुरी समाचार (आश्विन)
सूचना
सूचना(पुस्तक कमिशन बाबत)
सोनगढमां पू. गुरुदेवनुं आगमन अने
स्वागत महोत्सव
संपादकीय (आजना युवकबंधुओने)
३०–१८प
संसारथी छूटवानो उपाय
संसारनुं मूळ
संसारभ्रमणनुं मूळ कारण अने तेना छेदनो
उपाय
स्वतंत्र परिणमन
स्वभाव, विभाव अने संयोग
स्वरूपनी प्राप्ति सुगम छे, परने पोतानुं
करवुं अशक्य छे
हे जीव! एक क्षण पण तारा स्वरूपनो
विचार कर
हे बंधु! दुनियाने राजी राखवामां...के.....
हे भव्य! तुं तारा आत्माने मोक्षमार्गमां
स्थाप
‘हे सखा! चालने मारी साथे मोक्षमां’
सुधी जीवने धर्म थतो नथी. अहो! पूर्वे अनंतकाळमां अनंत जन्ममां पुण्य
करीने स्वर्गमां गयो, पण पोताना ज्ञानानंद स्वरूपने कदी एक क्षण पण
लक्षमां लीधुं नहि, तेथी संसारमां ज रखडयो. माटे आचार्यदेव कहे छे के अरे!
अनंत जन्म मरणमां जीवोने आ चैतन्यतत्त्वनी प्राप्ति दुर्लभ छे,
चैतन्यतत्त्वनी वात पण तेने दुर्लभ थई गई छे. पुण्य–पाप तो सुलभ छे, ते
अनंतवार करी चूक्यो छे, पण ते पुण्य–पापथी पार ज्ञानस्वरूप आत्मा शुं
चीज छे ते वात पूर्वे कदी एक क्षण लक्षमां पण लीधी नथी. माटे हे भाई! हवे
अंर्तद्रष्टि करीने शुद्धनयथी तारा आत्माना स्वभावने लक्षमां तो ले.