Atmadharma magazine - Ank 133
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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“सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः”
वर्ष बारमुं : सम्पादक : कारतक
अंक पहेलो रामजी माणेकचंद दोशी २४८१
“प्रभुजी! तारा पगले पगले मारे आवुं रे.”
“अहो नाथ! अंतरनी शक्तिना अवलंबने आप सर्वज्ञ थया ने अमने ए मार्ग
बताव्यो, हे नाथ! तारी प्रसन्नताथी हुं पण तारा ज मार्गे चाल्यो आवुं छुं.... हे भगवान!
आपनी प्रसन्नता प्राप्त करीने हुं आत्मबोध पाम्यो........हे प्रभु! हुं पण तारा पगले पगले
चाल्यो आवुं छुं......”
–पोताना सर्वज्ञस्वभावनी प्रतीत करीने भगवानना भक्तो कहे छे के “हे
भगवान! आप तो आत्माना अतीन्द्रिय–परम आनंदना पूर्ण भोक्ता थई गया, ने
अमारा माटे पण आप थोडो प्रसाद मूकता गया छो... हे भगवान! आपनी प्रसन्नताथी
अमने पण आपना अतीन्द्रियआनंदनी प्रसादी मळी छे.”
–दीपोत्सवी–प्रवचनमांथी
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट ∴ सोनगढ (सौराष्ट्र)