नूतन वर्षना प्रारंभे.
आ नूतन वर्षना प्रारंभे मंगलरूपे श्री पंचपरमेष्ठी भगवंतोने, परम उपकारी गुरुदेवने अने
जिनवाणी–भगवती माताने, अतिशय भक्तिपूर्वक अभिवंदना करीए छीए; तेमज “आत्मधर्म”ना ग्राहको
तथा पाठको सर्वे आत्मार्थी–मुमुक्षु साधर्मीजनोने वात्सल्यपूर्वक अभिनंदन पाठवीए छीए.
अगियार वर्ष पूरां करीने आपणुं ‘आत्मधर्म’ मासिक नूतन वर्षमां आगळ वधे छे. अमने जणावतां
आनंद थाय छे के आ नूतन वर्षनी मंगलबोणीमां पू. गुरुदेवे “सर्वज्ञता” अने “क्रमबद्धपर्याय” जेवा अतिशय
अगत्यना विषय उपर एकधारा आठ अद्भुत प्रवचनोनी महान भेट ‘आत्मधर्म’ने आपी छे....ते उपरांत
वळी दीपावलीना मंगलदिने “केवळीभगवाननो प्रसाद” पण आप्यो छे....आ खरेखर मुमुक्षुओनां महान
सद्भाग्य छे.
भेदज्ञाननो झणझणाट करती, पू. गुरुदेवनी पावनकारी वाणीमांथी खास खास विषयो चूंटीने
‘आत्मधर्म’मां आपवामां आवे छे. आत्माना अतीन्द्रियसुखने स्पर्शीने बहार आवती पू. गुरुदेवनी सुमधुर
वाणी दुनियाना दुःखी जीवोने सुखनो मार्ग देखाडे छे, मूंझायेला मानवीने मुक्तिनी प्रेरणा जगाडे छे अने
जैनशासनना ऊंडा हार्दने स्पष्टपणे समजावीने मुमुक्षु जीवोने नवी ज द्रष्टि तरफ दोरी जाय छे. पू. गुरुदेवनी
आवी उपदेशामृत धाराना अंशनुं पण वहन करवुं ते आ ‘आत्मधर्म’ ने माटे गौरवनो विषय छे. आम छतां
पण, ते वाणी परोक्ष छे, संसारथी संतप्त अने मुक्तिना अभिलाषी आत्मार्थी जीवोए तो प्रत्यक्षपणे गुरुदेवना
समागममां रहीने सीधेसीधुं श्रवण करीने ए अमृतधारा झीलवी–ए खास जरूरनुं छे. जे अपूर्व तत्त्व पू. गुरुदेव
समजावे छे ते झीलीने, तेनुं अंतर्मंथन ने निर्णय करीने, तद्रूप आत्मपरिणमन करवुं ते आपणुं सौनुं कर्तव्य अने
ध्येय छे. आ ध्येयने पहोंची वळवा माटे पू. गुरुदेव अहर्निश प्रेरणा अने प्रोत्साहन द्वारा जे अचिंत्य उपकार करी
रह्या छे तेने फरी फरी याद करीने परमभक्तिपूर्वक नमस्कार करीए छीए. –संचालको
‘आत्मधर्म’ना भेट पुस्तक विषे चोखवट
मुंबईमां निवास करता ‘आत्मधर्म’ना अधिकांश ग्राहकोने भेट पुस्तक मळी गयुं छे. घणा
ग्राहकोने उक्त पुस्तक कये स्थळे मळे छे, तेनी जाण नहि होवाथी पुस्तको बाकी रह्यां छे; तो
मानवंता ग्राहकोने अभ्यर्थना करवामां आवे छे के नीचेना सरनामे रूबरूमां जई मळवाथी पुस्तक
प्राप्त थई शकशे.
पुस्तकनुं प्राप्ति–स्थान :
श्री हिम्मतलाल छोटालाल.
६९/७१ सुतार चाल,
मुंबई, २.
निवेदन
‘आत्मधर्म’नो प्रस्तुत अंक पूज्य गुरुदेवनां अति महत्वपूर्ण आठ प्रवचनो प्रकाशित करवानां
होवाने कारणे, विलंबथी प्रकाशित थई गयो छे. उक्तांकमां प्रवचनो ६४ पृष्टमां समावी लेवामां
आव्यां छे.
विशेषसूचना–
उपरोक्त कारणने वश थई कार्यनी अधिकताने अनुलक्षीने मागशर मासनो अंक पण आठेक
दिवस विलंबथी प्रकाशित थशे.
व्यवस्थापक,
जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट,
सोनगढ [सौराष्ट्र]