पावापुरीमां भगवान अशरीरी सिद्धदशाने पाम्या. अने भगवानना गणधर श्री गौतम स्वामी पण आज
दिवसे केवळज्ञान पाम्या.... अरिहंतपद पाम्या...
शुद्ध सिद्धदशा, तेमज ज्ञाननी पूर्णदशारूप केवळज्ञान आ जगतमां छे–एवो जेणे निर्णय कर्यो तेणे पोताना
आत्माना पूर्ण शुद्धस्वभावनो निर्णय कर्यो....एटले सिद्धदशानो ने केवळज्ञाननो उपाय तेने पोताना आत्मामां
शरू थई गयो...ते भगवाननो नंदन थयो, तेने सर्वज्ञभगवाननी प्रसादी मळी.
निर्णय करीने,...‘मारा आत्मामां पण पूर्णदशा प्रगटवानुं सामर्थ्य भर्युं छे, हुं राग जेटलो के अधूरी दशा जेटलो
नथी पण परमात्मदशा प्रगटवाना सामर्थ्यनो पिंड छुं’ एम पोताना स्वभावसामर्थ्यनो विश्वास करवो ते अपूर्व
सम्यग्दर्शन छे. भगवानने पूर्ण केवळज्ञानसूर्य खीली गयो छे ने आ आत्माने ते केवळज्ञानप्रभात ऊगवा माटेनुं
परोढियुं थयुं. अनादिना मिथ्यात्वनुं अंधारुं टळीने सम्यग्दर्शन थयुं त्यां केवळज्ञानप्रभातनो पो’ फाट्यो... अने
हवे अल्पकाळमां तेने पूर्ण केवळज्ञानसूर्य खीली जशे.–जुओ, आ सर्वज्ञ भगवाननी ओळखाणनुं फळ!
प्रगटवानुं सामर्थ्य आत्माना स्वभावमां ज छे...तेनी प्रतीत करो...तेनी सन्मुखता करो...” भगवाननो आवो
उपदेश झीलीने सुपात्र जीवो अंर्तमुख थईने सम्यग्दर्शनादि पाम्या...त्यां तेओ कहे छे के अहो!
सर्वज्ञभगवानना प्रसादथी अमे आत्मबोध पाम्या! हे नाथ! आपनी अमारा उपर प्रसन्नता थई...केवळी
भगवानना प्रसादथी अमने आत्मबोध थयो...हे नाथ! मारा उपर तारी करुणा थई...महेरबानी थई...कृपा
थई! –‘आम कोण कहे छे?’–अंतरना ज्ञानानंद स्वभावनी द्रष्टि अने प्रतीत करीने जेणे पोताना आत्मानी
प्रसन्नता मेळवी छे–आत्माना आनंदनो अनुभव कर्यो छे–एवा ज्ञानी–धर्मात्मा पोतानी प्रसन्नता जाहेर करतां
कहे छे के अहो! केवळी भगवाने अमारा उपर प्रसन्नता करी...अमारा उपर भगवाननी महेरबानी
थई...अमने भगवाननी प्रसादी मळी. हे भगवान! आजे आप प्रसन्न थया, आजे आपनी कृपा थई...हे
भगवान! आपनी कृपाथी आज अमारा भवभ्रमणनो अंत आव्यो. भगवान तो वीतराग छे, तेमने कोई
उपर करुणानो राग होतो नथी, पण समकीतिने भगवान प्रत्ये तेमज पोताना गुरु प्रत्ये आवो भक्तिनो
आह्लाद आव्या विना रहेतो नथी. हे नाथ! ‘तारी कृपाए अमे आत्मबोध पाम्या ने हवे अल्पकाळे अमारा
भवनो नाश थईने मुक्तदशा थवानी छे–एम ज आपे केवळज्ञानमां जोयुं छे’–ए ज आपनी अमारा उपर
अकषायी करुणा छे, ए ज आपनी प्रसन्नता अने महेरबानी छे.
एवा धर्मात्माओ–साधु–सज्जनो–समकीति संतो कहे छे के हे नाथ! आप तो केवळज्ञान अने मोक्ष पामीने
परमानंदथी तृप्त....तृप्त थया... ने अमारा उपर पण करुणा करीने अमने ए