Atmadharma magazine - Ank 133
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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आनंदनी प्रसादी आपी...आपना प्रतापे अमने पण अमारी सर्वज्ञशक्तिनी प्रतीत थई... अमने अमारा
आनंदनुं भान थयुं...आ रीते, आप वीतराग होवा छतां हे नाथ! अमारी प्रसन्नतानुं कारण छो...
जुओ, साधु पुरुषो एटले के सज्जनो (सत्–जनो)–समकीति धर्मात्माओ कृतज्ञ छे, आत्माना
श्रेयमार्गमां जेमनो उपकार थयो तेने कदी भूलता नथी. भगवानना निमित्ते पोताने रत्नत्रयभाव प्रगट्यो ने
आत्मानी प्रसन्नता प्रगटी त्यां कहे छे के अहो! अमारा उपर भगवाननी महेरबानी थई. पोतामां प्रसन्नता
थई त्यां भगवाननी प्रसन्नतानो पण आरोप कर्यो के भगवान मारा उपर प्रसन्न थया.
हे महावीर भगवान! आप आजे सिद्ध थया, हे गौतम भगवान! आप आजे केवळज्ञान पाम्या, हे
भगवान! आपनी प्रसन्नता प्राप्त करीने हुं आत्मबोध पाम्यो.....हे नाथ! हुं पण तारा पगले पगले चाल्यो
आवुं छुं.....
जुओ, आ दीवाळीनो प्रसाद वहेंचाय छे! लोको लक्ष्मीनी प्रसन्नता मांगे छे, अहीं तो कहे छे के
सर्वज्ञभगवान अमारा उपर प्रसन्न थया...आजे अमने भगवान सामा मळ्‌या (–द्रष्टिमां सन्मुख थया),
बहार नीकळतां ज आजे भगवाननो भेटो थयो–शक्तिमां तो भगवान हता, पण व्यक्तपर्यायमां प्रतीत करतां
ज भगवाननो भेटो थयो...भगवाननो साक्षात्कार थयो...“अहो नाथ! अंतरनी शक्तिना अवलंबने आप
सर्वज्ञ थया ने अमने ए मार्ग बताव्यो, हे नाथ! तारी प्रसन्नताथी हुं पण तारा ज मार्गे चाल्यो आवुं छुं.....”
–जुओ, आ निःशंकतानो मार्ग!
महावीर भगवानना मोक्षने आजे २४८१मुं वर्ष बेठुं. पोताना सर्वज्ञस्वभावनी प्रतीत करीने भगवानना
भक्तो कहे छे के हे भगवान! आप तो आत्माना अतीन्द्रिय–परम आनंदना पूर्ण भोक्ता थई गया ने अमारा
माटे पण आप थोडो प्रसाद मूकता गया छो...हे भगवान! आपनी प्रसन्नताथी अमने पण आपना अतीन्द्रिय–
आनंदनी प्रसादी मळी छे...आम समकीति भक्तिपूर्वक भगवानना आनंदनो प्रसाद माने छे.
–आ छे भगवाननो दीवाळीनो प्रसाद!
भगवान जेवा पोताना सर्वज्ञस्वभावनी प्रतीत करीने, स्वसन्मुख थईने जेणे सम्यग्दर्शन अने
अतीन्द्रियआनंदना अंशनुं वेदन प्रगट कर्युं, तेणे ज खरेखर भगवाननी मुक्तिनो महोत्सव ऊजव्यो...तेना
उपर भगवान प्रसन्न थया, अने तेने ज भगवाननी प्रसादी प्राप्त थई. “ए अतीन्द्रिय–प्रसादना दातार अने
लेनार बंनेनो जय हो–जय हो.”