आनंदनुं भान थयुं...आ रीते, आप वीतराग होवा छतां हे नाथ! अमारी प्रसन्नतानुं कारण छो...
आत्मानी प्रसन्नता प्रगटी त्यां कहे छे के अहो! अमारा उपर भगवाननी महेरबानी थई. पोतामां प्रसन्नता
थई त्यां भगवाननी प्रसन्नतानो पण आरोप कर्यो के भगवान मारा उपर प्रसन्न थया.
आवुं छुं.....
बहार नीकळतां ज आजे भगवाननो भेटो थयो–शक्तिमां तो भगवान हता, पण व्यक्तपर्यायमां प्रतीत करतां
ज भगवाननो भेटो थयो...भगवाननो साक्षात्कार थयो...“अहो नाथ! अंतरनी शक्तिना अवलंबने आप
सर्वज्ञ थया ने अमने ए मार्ग बताव्यो, हे नाथ! तारी प्रसन्नताथी हुं पण तारा ज मार्गे चाल्यो आवुं छुं.....”
महावीर भगवानना मोक्षने आजे २४८१मुं वर्ष बेठुं. पोताना सर्वज्ञस्वभावनी प्रतीत करीने भगवानना
माटे पण आप थोडो प्रसाद मूकता गया छो...हे भगवान! आपनी प्रसन्नताथी अमने पण आपना अतीन्द्रिय–
आनंदनी प्रसादी मळी छे...आम समकीति भक्तिपूर्वक भगवानना आनंदनो प्रसाद माने छे.
भगवान जेवा पोताना सर्वज्ञस्वभावनी प्रतीत करीने, स्वसन्मुख थईने जेणे सम्यग्दर्शन अने
उपर भगवान प्रसन्न थया, अने तेने ज भगवाननी प्रसादी प्राप्त थई. “ए अतीन्द्रिय–प्रसादना दातार अने
लेनार बंनेनो जय हो–जय हो.”