Atmadharma magazine - Ank 134-135
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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“सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः”
वर्ष बारमुं : संपादक : मागसर – पोष
अंक बीजो रा म जी मा णे क चं द दो शी २४८१
क्रमबद्ध पर्याय – प्रवचन: बीजो भाग
मागसर अने पोष मासना आ संयुक्त अंकमां क्रमबद्धपर्यायना
बीजा पांच प्रवचनो प्रसिद्ध थाय छे. आ क्रमबद्धपर्याय ते अतिशय
महत्त्वनो विषय छे ने दरेक मुमुक्षुओए तेनो बराबर निर्णय करवो खास
जरूरी छे. आ क्रमबद्धपर्यायनो यथार्थ निर्णय, अनेक प्रकारनी विपरीत
मान्यताओना गोटा काढी नांखे छे, ने बधा पडखांनुं (–निश्चय–व्यवहारनुं,
उपादान–निमित्तनुं कर्ताकर्म वगेरेनुं) समाधान करावे छे. आ
क्रमबद्धपर्यायनो निर्णय कर्या वगर जीवने परमां कर्ताबुद्धिनी मिथ्यामान्यता
कदापि मटती नथी. तेथी परम कृपाळु गुरुदेवे मुमुक्षु जीवो उपर महान
करुणा करीने विशिष्ट प्रवचनो द्वारा आ विषय स्पष्ट कर्यो छे. (आ अंकमां
छपायेला प्रवचनो पण पू. गुरुदेवे वांची जवा कृपा करी छे.)
घणा मुमुक्षु जीवोने प्रश्न ऊठे छे के अमारे पुरुषार्थ कई रीते करवो?
‘मुमुक्षुओने केवा प्रकारे पुरुषार्थ कर्तव्य छे.’ –ते आमां समजाव्युं छे. आ
प्रवचनोमां आ वात खास समजाववामां आवी छे के ज्ञायकस्वभावना
निर्णयना पुरुषार्थ वडे ज क्रमबद्धपर्यायनुं स्वरूप यथार्थपणे समजाय छे. जे
जीव ज्ञायकस्वभावना निर्णयनो पुरुषार्थ नथी करतो तेने क्रमबद्धपर्यायनो
पण निर्णय थतो नथी. आ रीते ज्ञानस्वभाव तरफथी शरूआत करे तो ज
आ वात यथार्थ समजाय तेवी छे. अने आ रीते जे जीव यथार्थपणे आ
वात समजशे तेने आत्महितनो महान लाभ थशे.
वार्षिक लवाजम त्रण रूपिया १३४–१३प छूटक नकल चार आना
आ अंकनुं मूल्य आठ आना
श्री जैनस्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट: सोनगढ (सौराष्ट्र)