Atmadharma magazine - Ank 136
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष बारमुं, अंक त्रीजो, माह २४८१ (वार्षिक लवाजम ३ – ० – ०)
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महासिद्धांत
(१) हे जीव! अनादिथी मांडीने आज सुधी कोई पर जीवे के जडे तने किंचित्
पण लाभ के नुकसान कर्युं नथी.
(२) अनादिथी आज सुधी कोई बीजा जीवने के जडने तें किंचित पण लाभ के
नुकसान कर्युं नथी.
(३) अनादिथी अज्ञानभावने लीधे तें तारा आत्माने नुकसान कर्युं छे.
(४) ते नुकसान तारा त्रिकाळी द्रव्य–गुणमां नथी थयुं पण वर्तमान पूरती
क्षणिक अवस्थामां ज ते नुकसान थयुं छे.
(प) तारो त्रिकाळीस्वभाव शुद्ध छे. ते स्वभावने ओळखीने तेनुं अवलंबन
कर, तो पर्यायमांथी अनादिनुं नुकसान टळेने धर्मनो अपूर्व लाभ प्रगटे.