Atmadharma magazine - Ank 137
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955).

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: ફાગણ : ૨૦૧૧ : આત્મધર્મ–૧૩૭ : ૧૩૩ :
× × × शुद्ध द्रव्यार्थिक नय से यह बताया है कि आत्मा का एक असाधारण चैतन्यभाव है। × × × शुद्ध निश्चयनय को
सत्यार्थ कहकर उसका आलम्बन दिया है। × × × आत्मा व्यवहारनय की द्रष्टि में जो बद्धस्पृष्ट आदि रूप दिखाई देता है वह
इस द्रष्टि से तो सत्यार्थ ही है, परंतु शुद्धनय की द्रष्टि से बद्धस्पृष्टादिता असत्यार्थ है।[,, ,, समयसार पृ. ४० गा. १४ भावार्थ]
यहाँ यह समझना चाहिये कि यह नय है वह श्रुतज्ञान–प्रमाण का अंश है; श्रुतज्ञान वस्तु को परोक्ष बतलाता है,
इसलिये यह नय भी परोक्ष ही बतलाता है। शुद्धद्रव्यार्थिकनय का विषयभूत, बद्धस्पृष्ट आदि र्पांच भावों से रहित आत्मा
चैतन्यशक्तिमात्र है।
× × × केवलज्ञान यद्यपि छद्मस्थ को प्रत्यक्ष नहीं है तथापि वह शुद्धनय आत्मा के केवलज्ञानरूप को
परोक्ष बतलाता है। जब तक जीव इस नय को नहीं जानता तब तक आत्मा के पूर्ण रूप का ज्ञान–श्रद्धान नहीं होता। इसलिये
श्री गुरुने इस शुद्धनय को प्रगट करके उपदेश किया है कि बद्धस्पृष्ट आदि पाँच भावों रहित पूर्ण ज्ञानघनस्वभाव आत्मा को
जानकर श्रद्धान करना चाहिये, पर्यायबुद्धि नहीं रहनी चाहिये।
जैनमत में प्रत्यक्ष और परोक्ष–दोनों प्रमाण माने गये हैं; उनमें से आगमप्रमाण परोक्ष है; उसका भेद शुद्धनय है। इस
शुद्धनय की द्रष्टि से शुद्ध आत्मा का श्रद्धान करना चाहिये। [,, ,, हिंदी समयसार पृ. ४०–४१ गा. १४ भावार्थ]
यहाँ यह उपदेश है कि शुद्धनय के विषयरूप आत्मा का अनुभव करो। [,, हिंदी समयसार पृ. ४१]
शुद्धनय की द्रष्टि से देखा जाये तो सर्व कर्मों से रहित चैतन्य–मात्र देव अविनाशी आत्मा अंतरंग में स्वयं
विराजमान है। [,, हिंदी समयसार पृ. ४२ कलश १२ भावार्थ]
शुद्धनय के विषयभूत आत्मा की अनुभूति ही ज्ञान की अनुभूति है इसप्रकार आगे की गाथा की सूचना के अर्थरूप
काव्य कहते हैं
आत्मानुभूतिरिति शुद्धनयात्मिका या
ज्ञानानुभूतिरियमेव किलेति बुद्ध्वा।
(अर्थ–) इसप्रकार जो पूर्व कथित शुद्धनयस्वरूप आत्मा की अनुभूति है वही वास्तव में ज्ञान की अनुभूति है। × × ×
(भावार्थ–) × × × ज्ञान को मुख्य करके कहते हैं कि शुद्धनय के विषयस्वरूप आत्मा की अनुभूति ही सम्यग्ज्ञान है।
[,, ,, समयसार पृ. ४२ कलश १३]
× × × परनिमित्त से उत्पन्न हुए भावों से भिन्न अपने स्वरूप का अनुभव, ज्ञान का अनुभव है; और यह अनुभव
भावश्रुत ज्ञानरूप जिनशासन का अनुभव है। शुद्धनय से इसमें कोई भेद नहीं है। [,, ,, समयसार पृ. ४५ गाथा. १५ भावार्थ]
शुद्धनिश्चयनय से देखा जाय तो प्रगट ज्ञायकत्व ज्योति मात्र से आत्मा एकस्वरूप है क्योंकि शुद्ध द्रव्यार्थिकनय से
सर्व अन्य द्रव्य के स्वभाव तथा अन्य के निमित्त से होनेवाले विभावों को दूर करने रूप उसका स्वभाव है...
[,, ,, समयसार पृ. ४७ कलश १८]
× × × मैं द्रव्यद्रष्टि से शुद्धचैतन्यमात्र मूर्ति हूँ।
(भावार्थ) आचार्य कहते हैं कि शुद्धद्रव्यार्थिकनय की द्रष्टि से तो मैं शुद्धचैतन्यमात्र मूर्ति हूँ × × ×
[–पाटनी दि० जैन ग्रंथमाला का हिंदी समयसार पृ. ५ कलश ३]
द्रव्यद्रष्टि से तो द्रव्य जो है वही है × × × द्रव्यद्रष्टि से देखा जाये तो ज्ञायकत्व, ज्ञायकत्व ही है × × × द्रव्यद्रष्टि
शुद्ध है, अभेद है, निश्चय है, भूतार्थ है, सत्यार्थ है, परमार्थ है... [,, ,, समयसार पृ. १६–१७ गा. ६ भावार्थ]
× × × ऐसा एक ज्ञायकत्वमात्र स्वयं शुद्ध है, यह शुद्धनय का विषय है। अन्य जो परसंयोगजनित भेद हैं वे सब
भेदरूप अशुद्धद्रव्यार्थिक नय के विषय हैं। अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय भी शुद्धद्रव्य की द्रष्टि में पर्यायार्थिक ही है इसलिये व्यवहारनय
ही है, ऐसा आशय समझना चाहिये।
... अशुद्धनय को यहाँ हेय कहा है, क्योंकि अशुद्धनय का विषय संसार है।
[,, ,, समयसार पृ. १७ गा. ६ भावार्थ]
शुद्धनयका विषय अभेद एकरूप वस्तु है। [,, ,, समयसार पृ. २१ गा. ८ भावार्थ]
भूतार्थदर्शी (शुद्धनयको देखनेवाले) अपनी बुद्धि से डाले हुए शुद्धनयके अनुसार बोध होने मात्रसे उत्पन्न
आत्मकर्म के विवेकता से..............। यहाँ शुद्धनय कतकफलके स्थानपर है, इसलिये जो शुद्धनय का आश्रय लेते हैं वे ही
सम्यक् अवलोकन करने से सम्यग्द्रष्टि हैं। [,, ,, समयसार पृ. २४ गा. ११ टीका]
शुद्धनय का विषय अभेद एकाकाररूप नित्य द्रव्य है, उसकी द्रष्टि में भेद दिखाई नहीं देता; ......उपकारी श्री गुरुने
शुद्धनय के ग्रहण का फल मोक्ष जानकर उसका उपदेश प्रधानता से दिया है कि––“शुद्धनय भूतार्थ है, सत्यार्थ है; इसका
आश्रय लेने से सम्यक्द्रष्टि हो सकता है; इसे जाने बिना जबतक जीव व्यवहार में मग्न है तबतक आत्मा का ज्ञान–श्रद्धानरूप
निश्चयसम्यक्त्व नहीं हो सकता।” [,, ,, समयसार पृ
. २४–२५ गा. ११ भावार्थ]
× × × जिसने भिन्न भिन्न एक एक भावस्वरूप अनेक भाव दिखाये हैं ऐसा व्यवहारनय विचित्र अनेक वर्णमाला के
समान होने से,