Atmadharma magazine - Ank 138
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: १५८ : आत्मधर्म २४८१: चैत्र :
तेनुं ज्ञान थया विना रहे नहीं, पोताना स्वभावनी प्राप्तिनो उद्यम करे तो तेनी प्राप्ति थया विना
रहे नहीं, अल्पकाळमां ज तेनी परिपूर्ण प्राप्ति थई जाय; अने परने पोतानुं करवा माटे
अनंतकाळ मथे तोय परनो एक अंश पण तेनो थाय नहीं. माटे हे जीव! बहारनो व्यर्थ प्रयत्न
छोडीने तुं तारा स्वभावनी प्राप्तिनो उद्यम कर. परचीजने पोतानी करवी ते तो अशक्य छे ने
पोताना स्वभावनी प्राप्ति करवी –तेनी श्रद्धा–ज्ञान–अनुभव करवो–ते तो सुगम छे, सम्यक्
प्रयत्नथी ते थई शके तेवुं छे. माटे सत्समागमे यथार्थ श्रवण–मनन करीने अंतरमां
आत्मस्वरूपनी ओळखाण करवी ने तेनो अनुभव करवो ते अर्पूव हित अने धर्मनो उपाय छे.
जेनामां जे स्वभाव भर्यो होय तेमांथी ते प्रगटे, पण जेनामां स्वभाव न होय तेमांथी ते
प्रगटे नहि. जेम लींडीपीपरमां तीखासनो स्वभाव भर्यो छे तो तेमांथी चोसठपोरी परिपूर्ण
तीखास प्रगटी शके पण तेमांथी मीठाश न प्रगटे गमे तेवी ऊंची लींडीपीपर होय तो पण तेमांथी
साकरनी मीठास प्रगट करवी अशक्य छे केमके तेनामां तेवो स्वभाव नथी. तेम भगवान
आत्मामां ज्ञान अने आनंदनो स्वभाव भर्यो छे, तेने लक्षमां लईने तेमां एकाग्र थतां तेमांथी
केवळज्ञान अने पूर्ण आनंदनो अनुभव प्रगट थई शके छे, परंतु आत्मा गमे तेटलो प्रयत्न करे
तो पण जड शरीर वगेरेने पोतानुं करवुं ते अशक्य छे, केम के ते पोतानी चीज नथी. वळी जेनामां
जे स्वभाव होय ते बहारथी न आवे जेम लींडीपीपरमां जे चोसठपोरी तीखास प्रगटे छे ते क्यांय
बहारथी नथी आवती. पण तेनामां स्वभाव भर्यो छे तेमांथी ज प्रगटे छे; तेम आत्मामां परिपूर्ण
ज्ञान अने आनंद प्रगटे ते बहारना कोई साध नथी नथी प्रगटता, पण अंतरमां त्रिकाळ चिदानंद
स्वभावमां परिपूर्ण सामर्थ्य भर्युं छे तेमांथी ज ते प्रगटे छे. भगवान! तारा स्वभावमां अचिंत्य
सामर्थ्य भर्युं छे, परिपूर्ण ज्ञान अने आनंद प्रगटवानी ताकात अत्यारे ज तारा आत्मामां भरी
छे, तेनो तुं विश्वास कर....शुद्धनय वडे तारा अंर्तस्वभावने लक्षमां ले. जीवे पोताना
ज्ञानानंदस्वरूपने कदी लक्षमां लीधुं नथी शुद्धनयनो पक्ष कदी कर्यो नथी एटले के मारुं शुद्ध
ज्ञानानंदस्वरूप रागथी पार निरालंबी छे– एवुं अंर्तलक्ष कदी कर्युं नथी, आत्माना आवा
अंर्तस्वभाव सिवाय बहारमां वीजुं कोई जीवने शरणभूत नथी; अंतरमां स्वानुभवगम्य
भगवान आत्मा छे ते ज शरणभूत छे, ते तमारी रक्षा करो–एम कहीने आचार्यदेव आशीर्वाद
आपे छे. राग के देहनी क्रिया ते कोई आत्माना रक्षक नथी, तेम ज बीजुं कोई आ आत्मानुं रक्षक
नथी, पण अंतरमां पोताना अतीन्द्रिय अचिंत्य आत्मस्वभावनुं लक्ष अने प्रतीत करवी ते ज
पोतानी रक्षा करनार छे. भाई! आ जगतमां तारुं चैतन्यतत्त्व ज तारी रक्षा करनार छे ने ते ज
तने शरणभूत छे, माटे तारा चैतन्यस्वरूपनी सन्मुख थईने तेनी श्रद्धा कर–ज्ञान कर ने तेनुं ज
शरण ले.