Atmadharma magazine - Ank 138
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: १६० : आत्मधर्म २४८१: चैत्र :
छेदाई गयो ने मोक्ष नजीक आव्यो.–आ प्रमाणे अकाळनयथी कहेवाय छे, मोक्ष थवानो काळ तो जे छे ते ज छे,
ते काळ कांई आघोपाछो थई गयो नथी.
आत्मा केवो छे एम शिष्ये पूछयुं हतुं, तेने आत्माना धर्मो वडे आत्मा ओळखावे छे. अहीं आचार्यदेवे
४७ नयोथी ४७ धर्मोनुं कथन करीने आत्मानुं स्वरूप बताव्युं छे. तेमां काळनयथी एम कह्युं के जे समये तेनी
मुक्तिनो स्वकाळ छे त्यारे ज ते मुक्ति पामे छे. जेम केरी तेनी ऋतुथी पाके छे तेम आत्माना स्वभावमां
मुक्तिनो जे समय छे ते समये ते मुक्तिपणे परिणमी जाय छे. स्वभावनी द्रष्टि करीने ठरे त्यां आत्मानी मुक्ति
थई एम काळनयथी कहेवामां आवे छे. परंतु ते मुक्ति थाय छे, त्यां आत्माना स्वकाळथी मुक्ति पुरुषार्थ वगर
थई नथी.
उग्र पुरुषार्थ वडे जीवे शीघ्र मुक्ति प्राप्त करी लीधी–एम अकाळनयथी कहेवामां आवे छे, तेमां पण
मुक्तिनो समय तो जे छे ते ज छे, ते समय कांई फरी गयो नथी. जीवे अनंत पुरुषार्थ करीने घणां काळना
कर्मोनो अल्पकाळमां नाश कर्यो ने शीघ्र मुक्ति प्राप्त करी–एम लक्षमां लेवुं ते अकाळनय छे.
आ जे धर्मो कहेवाय छे ते बधाय धर्मो शुद्ध चैतन्यवस्तुना आधारे छे; कोई निमित्तना आधारे, रागना
आधारे, एकली पर्यायना आधारे, के एकेक धर्मना आधारे आ धर्म रहेला नथी. एटले आ धर्मनो निर्णय
करवा जतां धर्मी एवुं चैतन्यद्रव्य लक्षमां आवे छे. आखा वस्तु स्वभावने द्रष्टिमां लीधा विना तेना धर्मनो
यथार्थ निर्णय थई शके नहि. आत्मद्रव्यनी सन्मुखताथी ज तेना धर्मनी साची प्रतीति थाय छे, चैतन्य
स्वभावसन्मुख जेनो पुरुषार्थ वळ्‌यो तेने अचिरं (शीघ्र) मुक्ति थया विना रहे नहीं.
जेम अचानक सर्प वगेरे करडतां नानी उंमरमां कोई माणस मरी जाय तो त्यां एम कहेवाय छे के आ
माणसनुं अकाळे अवसान थयुं. खरेखर तो तेनुं आयुष्य जे समये पूरुं थवानुं हतुं ते समये ज थयुं छे, कांई
वहेलुं नथी थयुं; पण लोकव्यवहारमां अकाळे अवसान पाम्यो एम कहेवाय छे. तेम आत्मामां एक एवो धर्म
छे के आत्मा पुरुषार्थ करीने अकाळे मोक्ष पाम्यो अर्थात् वहेलो मोक्ष पाम्यो–एम अकाळनयथी कहेवामां आवे
छे. जे जीव वस्तुस्वभावथी ऊंधुंं माने छे ने ऊंधुंं प्ररुपे छे ते जीव क्षणे क्षणे अनंत संसार वधारे छे, तेमज
स्वभावनी द्रष्टिना जोरे समकिति जीव अनंत संसारने एक क्षणमां तोडी नाखे छे ने शीघ्र मुक्ति पामे छे–एम
अकाळनयथी कहेवामां आवे छे. पहेलांं स्वभाव उपर द्रष्टि न हती ने संसार उपर द्रष्टि हती त्यारे क्षणे क्षणे
अनंत संसार वधारे छे एम कह्युं, अने ज्यां सत्समागमे ऊंधी द्रष्टि टाळीने स्वभावद्रष्टि करी त्यां एक क्षणमां
अनंत संसारने कट करी नाख्यो–एम अकाळनयथी कहेवाय छे. पण संसार थवानो हतो ने टाळ्‌यो अथवा तो ते
काळे मोक्ष थवानो न हतो ने थई गयो–एवो अकाळनयनो अर्थ नथी. अकाळनयथी पर्यायनो क्रम फरी जाय
छे–एम नथी. पण अनंतकाळनां कर्मो अल्पकाळमां तोडी नांख्यां–एम अकाळनयथी कहेवाय छे. आ नयो
छद्मस्थना ज्ञानमां होय छे, केवळी भगवानना ज्ञानमां नय होता नथी. तेमने तो एक साथे संपूर्ण प्रत्यक्ष ज्ञान
वर्ती रह्युं छे.
जुओ, काळनयथी अने अकाळनयथी जुदा जुदा बे धर्मो कह्या, ते बंने धर्मो जुदा जुदा जीवमां नथी
पण एक ज जीवमां ते बंने धर्मो एक साथे वर्ती रह्या छे; ए ज प्रमाणे नियति–अनियति वगेरे नयथी जे धर्मो
कह्या ते पण एकेक आत्मामां एक साथे ज वर्ती रह्या छे. एक जीव स्वकाळ अनुसार मुक्ति पामे ने बीजो जीव
पुरुषार्थ करीने अकाळे मुक्ति पामे–एम नथी अर्थात् एक धर्म एक जीवमां अने बीजो धर्म बीजा जीवमां एम
नथी, एक ज जीवमां बधा धर्म एक साथे रहेला छे.
काळनयथी तो जीव जे समये मुक्ति पामकवानो होय ते ज समये ज पामे ने अकाळनयथी तेमां फेरफार
थाय–एम नथी.
आ जीव तेना स्वकाळ अनुसार मुक्ति पाम्यो एम कहेवुं ते काळनयनुं कथन छे. परंतु, स्वकाळे जीव
मुक्ति पाम्यो एम ज्यारे काळनयथी कह्युं त्यारे पण, पुरुषार्थ वगर ते मुक्ति पाम्यो–एवो तेनो अर्थ नथी,
स्वकाळ वखतेे पण पुरुषार्थ तो भेगो ज छे.
अने आ जीव उग्र पुरुषार्थ वडे शीघ्र मुक्ति पाम्यो–एम कहेवुं ते अकाळनयनुं कथन छे. परंतु,
पुरुषार्थथी शीघ्र मुक्ति पाम्यो एम ज्यारे अकाळनयथी कह्युं त्यारे