Atmadharma magazine - Ank 138
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : २४८१ आत्मधर्म : १६१ :
पण, मुक्तिनो स्वकाळ न हतो ने मुक्ति थई–एवो तेनो अर्थनथी, पुरुषार्थ वखते तेनो स्वकाळ पण तेवो ज
छे.
आ रीते काळनय अने अकाळनय ए बंने नयोना विषयरूप बंने धर्मो आत्मामां एक साथे ज रहेला
छे एम समजवुं. अहीं जे धर्मो कहेवाय छे ते बधाय धर्मोनो अधिष्ठाता तो शुद्ध चैतन्यमूर्ति आत्मा छे, एवा
आत्माने द्रष्टिमां लेवो ते ज आ बधा धर्मोने जाणवानुं फळ छे.
–अहीं ३१मा अकाळनयथी आत्मानुं वर्णन पूरुं थयुं.
(हवे पुरुषकारनय अने दैवनयथी आत्मानुं वर्णन करे छे.)
(३२) पुरुषकारनये आत्मानुं वर्णन
‘आत्मद्रव्य पुरुषकार नये जेनी सिद्धि यत्नसाध्य एवुं छे, – जेने पुरुषकारथी लींबुनुं झाड प्राप्त थाय छे
एवा पुरुषकारवादीनी माफक.’ आत्मामां एक एवो स्वभाव छे के तेनी सिद्धि यत्नसाध्य छे. जेम कोई माणस
लींबु वावे ने तेने लींबुनुं झाड ऊगे, तेम चैतन्यस्वभावनी सन्मुख थईने तेनी रुचि अने एकाग्रताना प्रयत्न
वडे आत्मानी सिद्धि प्राप्त थाय छे.–आवुं जाणनार पुरुषकारनय छे. आवा पुरुषकारनय वगर नियतिनय के
काळनय होता नथी. बधा नयोथी–बधा पडखांथी द्रव्यने जाणीने प्रतीतमां लेवुं जोईए. पुरुषार्थथी ज आत्मानी
सिद्धि थाय–एवो धर्म आत्मामां त्रिकाळ छे.–क्यो पुरुषार्थ? निमित्त तरफनो के राग तरफनो पुरुषार्थ ते कांई
मुक्तिनुं कारण नथी पण आत्मा तरफ वळीने स्वभावनो पुरुषार्थ ते मुक्तिनुं कारण छे. आवा प्रयत्न वगर
आत्मानी सिद्धि साध्य थती नथी. यत्नसाध्य थाय एवो धर्म कोनो छे? आत्मद्रव्यनो ते धर्म छे एटले आत्मा
सामे जोवानुं रह्युं, अंतर्मुख आत्मस्वभावनी द्रष्टि अने एकाग्रताना प्रयत्नथी ज धर्म थाय छे.
नियतिनय के काळनयना वर्णन वखते पण आ पुरुषार्थधर्म वस्तुमां भेगो ज छे. आ पुरुषार्थ धर्मने
उडाडीने एकली नियतिने माने तो ते मिथ्याद्रष्टि छे, तेणे खरेखर आत्माने मान्यो नथी. तेमज पुरुषार्थ वखते
बीजा पण अनंत धर्मो भेगाज छे, एटले पुरुषार्थ करनारे पण एकला पुरुषार्थधर्म सामे जोवानुं नथी पण
अखंड आत्मद्रव्यनी सामे जोवानुं छे, केमके पुरुषार्थधर्म आत्मानो छे. अंतरना प्रयत्नथी मुक्ति थाय–एवो
मारो आत्मा छे–एम यत्नसाध्यधर्म वडे आत्माने लक्षमां ल्ये ते पुरुषकारनय छे. आना पछी हवे दैवनयथी
अयत्नसाध्यधर्म कहेशे, पण ते वखतेय आ पुरुषार्थधर्म तो भेगो ज छे, पुरुषार्थ वगरनुं एकलुं दैव नथी. एक
ज धर्मनो एकांत खेंचे ने आत्माना बीजा धर्मो ते वखते साथे ज वर्ते छे तेने न स्वीकारे तो ते मिथ्याद्रष्टि छे
ने तेना बधा नयो तथ्य छे. ज्ञानी नो अनंत धर्मना आधारभूत पोताना शुद्ध चैतन्यद्रव्यनी द्रष्टि राखीने,
प्रमाणज्ञानपूर्वक दरेक धर्मने ते ते प्रकारना नयथी जाणे छे, एटले ज्ञानीने ज सम्यक् नय होय छे–एम समजवुं.
ए प्रमाणे ३२मा पुरुषकारनयथी आत्मानुं वर्णन कर्युं.
(३) दैवनये आत्मानुं वर्णन
‘आत्मद्रव्य दैवनये जेनी सिद्धि अयत्नसाध्य छे एवुं छे, –पुरुषकारवादीए दीधेला लींबुना झाडनी
अंदरथी जेने (यत्न विना, दैवथी) माणेक प्राप्त थाय छे एवा दैववादीनी माफक. ’
अहीं दैववादीनो दाखलो आपीने समजाव्युं छे. मोटा पुण्यवंत पुरुषोनां मगजमां तेमज हाथीना
मस्तकमां मुक्ताफळ–मोती पाके छे, तेम कोई जीवने पुण्य प्रतापे लींबुना झाडमांथी पण मोती नीकळी पडे, त्यां
तेने मोती मेळववानो प्रयत्न न हतो ने मळ्‌या, तेथी तेने दैव कह्युं. तेम जे जीव स्वभाव तरफना प्रयत्नथी
मोक्षमार्गने साधे छे ते जीवने कर्मो स्वयमेव टळता जाय छे, कर्मने टाळवा तरफनो तेनो पुरुषार्थ नथी माटे तेने
दैव कह्युं. परंतु जेम दैववादीने लींबुमांथी मोती मळ्‌यां तेमां पण तेने ते जातना पुण्य छे तेम दैवनयथी
आत्माना यत्न विना कर्मो टळ्‌या ने मुक्ति थई–एम कहेवाय, तेमां पण स्वभाव तरफनो पुरुषार्थ तो छे ज.
अंतरमां चैतन्यस्वभाव तरफनो पुरुषार्थ कर्यो त्यां जड कर्मोनो