Atmadharma magazine - Ank 138
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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“सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः”
वर्ष बारमुं * अंक पांचमो] [१३८] [चैत्र २४८१
मुक्तिना उपायनुं पहेलुं सोपान.
अंतरना चिदानंदस्वभावने ओळखीने तेमां एकाग्रताथी राग टाळीने जेमणे
सर्वज्ञता प्रगट करी ते सर्वज्ञपरमात्माना दिव्यध्वनिमां एवो उपदेश आव्यो के: अरे
आत्मा! तें तारा असली स्वभाव तरफ कदी वलण कर्युं नथी; तारो आत्मा एक
समयमां परिपूर्ण ज्ञान ने आनंदस्वभावथी भरेलो छे तेने ओळखीने तेनी प्रीति कर.
अंर्तआत्मामां एकाग्र थतां राग टळी जाय छे ने सर्वज्ञता प्रगटी जाय छे, माटे राग
ते तारुं खरुं स्वरूप नथी पण पूर्णज्ञान ते तारुं स्वरूप छे.–आ प्रमाणे रागथी भिन्न
ज्ञानस्वरूप आत्मानो निर्णय करवो ते मुक्तिना उपायनुं पहेलुं सोपान छे.
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना