Atmadharma magazine - Ank 138
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 21

background image
समयसारनी समाप्ति.ने.प्रवचनसारनो प्रारंभ
परमपूज्य गुरुदेवना प्रवचनमां समयसार दसमी वखत वंचातुं हतुं.
आ फागण वद अमासना रोज समयसार समाप्त थतां दसमी वखतना
प्रवचनो पूर्ण थया छे. अने चैत्र सुद बीजना सुप्रभाते गुजराती
प्रवचनसार उपर त्रीजी वखतना प्रवचनोनो मंगल प्रारंभ थयो छे.
संसारसमुद्रनो पार पामी गएला संतोए, सिद्ध भगवान जेवा अतीन्द्रिय
परम आनंदना पिपासु एवा भव्य जीवोना हितने माटे जेनी रचना करी छे,
एवुं आ प्रवचनसार गुरुदेवना श्रीमुखे श्रवण करतां जिज्ञासु श्रोताओने
घणो उल्लास आवे छे....अने अतीन्द्रिय ज्ञान तथा अतीन्द्रियसुख माटेनी
तेनी पिपासा वधु उग्र बने छे. तेनो उपाय बतावतां प्रारंभमां ज पू.
गुरुदेवे कह्युं के: जेम दरियामां ऊंडे ऊतरतां रत्ननी प्राप्ति थाय छे., तेम
ज्ञानस्वभावी आत्मामां ऊंडे ऊंडे ऊतरतां अतीन्द्रिय आनंदनो अनुभव
थाय छे, केमके आत्मानो स्वभाव स्वयं आनंदस्वरूप छे. अतीन्द्रियआनंदनी
आवी वार्ता सांभळतां मुमुक्षुना हैयामांथी सहेजे एवा उद्गार सरी पडे छे
के:
जय हो........... आनंददर्शक प्रवचनसारना प्रवचनकारनो!
स्व – सामर्थ्यनी प्रतीत

अरे जीव! तें तारा परमानंद तत्त्वने अनादिथी लक्षमां लीधुं नथी,
परमात्मदशा प्रगटवानी ताकात मारामां ज अत्यारे पडी छे–एवी प्रतीति
कदी करी नथी, अने पूर्वे सत्समागमे यथार्थ रुचि पूर्वक तेनुं श्रवण पण कर्युं
नथी. अंर्तस्वभावनी सन्मुख थईने प्रतीत अने अनुभव करतां ख्यालमां
आवे छे के अहो! सर्वज्ञतानुं सामर्थ्य मारामां ज भर्युं छे, तेमांथी ज मारी
सर्वज्ञता व्यक्त थाय छे. अल्पज्ञता वखते पण सर्वज्ञतानुं सामर्थ्य मारा
स्वभावमां नित्य भर्युं छे; आवा अंर्तस्वभावने प्रतीतमां लईने तेनुं
अवलंबन करतां सर्वज्ञता प्रगटी जाय छे, आ सिवाय बीजा कोईपण
साधनथी सर्वज्ञता प्रगटती नथी.