Atmadharma magazine - Ank 139
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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“सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः”
वर्ष बारमुं : सम्पादक : वैशाख
अंक छठ्ठो रामजी माणेकचंद दोशी २४८१
‘संसार हराम छे.’
अरे, हवे आ दुःखमय संसारथी बस थाव... बस थाव! हवे मारे आ संसार न
जोईए;––आम संसारनी रुचि छोडीने आत्माने झंखतो जे जीव आवे छे तेने आत्मा
मळशे. संसारनो एक कणीयो पण जेने गमतो हशे ते जीव आत्मा तरफ नहि वळी
शके. जेने आत्मानुं सुख जोईतुं हशे तेने संसार नहि मळे, अने जेने संसार राखवो
हशे तेने आत्मानुं सुख नहि मळे; केमके बंनेनी दिशा ज जुदी छे. माटे हे जीव! जो
तारे आनंदमूर्ति आत्मा जोईतो होय तो आखा संसारने ‘हराम’ कर, के मारे हवे
संसार स्वप्ने पण जोईतो नथी. एक चिदानंद आत्मा सिवाय शरीर के विकार ते कांई
मारुं स्वरूप नथी ने तेमां क्यांय मारुं सुख नथी, हुं तो ज्ञान छुं, ने मारामां ज मारुं
सुख छे. आम अंतरमां गोततां आनंदमय आत्मानी प्राप्ति थाय छे.
–पू. गुरुदेव.
सुखशक्तिना प्रवचनमांथी
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट ∴ सोनगढ (सौराष्ट्र)