Atmadharma magazine - Ank 139
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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[टाईटल पानुं ३ नुं चालु]
मुनिओना मूळगुणो पण बराबर २८ छे, आ रीते कुदरती मेळ छे. मुनिदशा पण कुदरत साथे मेळवाळी
सहज छे ने!
–उत्पाद–व्यय ध्रुवत्वशक्ति तो दरेक आत्मामां सदाय छे, पण जे जीव उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वभावी
आत्मानुं लक्ष करीने परिणमे तेने आ शक्तिनुं भान थयुं कहेवाय, ने तेने ज तेनुं खरुं परिणमन थाय. आ
प्रमाणे बधी शक्तिओमां समजवुं. जेमके प्रभुत्वशक्ति तो बधा आत्मामां त्रिकाळ छे, पण अज्ञानदशामां तेनुं
भान नहि होवाथी तेनुं विकारी परिणमन छे. ज्यारे प्रभुत्वस्वभावनुं भान करीने तेना आश्रये परिणम्यो
त्यारे प्रभुतानुं खरुं परिणमन थयुं. वळी ए ज रीते अकार्यकारणशक्ति पण दरेक आत्मामां त्रिकाळ छे, तेनुं
परिणमन पण सदाय थया ज करे छे; पण अज्ञानीने ते शक्तिनुं भान नथी एटले तेने तेनुं वास्तविक
परिणमन थतुं नथी. ज्ञानीने पोताना अकार्य–कारणस्वभावनुं (–विकारनुं कार्य नहि ने विकारनुं कारण नहि–
एवा ज्ञान स्वभावनुं) भान थतां पर्याय पण तेवा स्वभावरूपे परिणमी गई, एटले पर्यायमां पण
अकार्यकारणपणुं थई गयुं. आ रीते द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेमां अकार्यकारणपणुं व्यापे छे ने ए रीते बधी
शक्तिओ द्रव्य–गुणपर्याय त्रणेमां व्यापे छे. आ खास समजवा जेवी वात छे कोई एम कहे के अकार्यकारणपणुं
पर्यायमां न होय, ––तो तेणे खरेखर अकार्यकारणशक्तिने जाणी ज नथी अकार्यकारण शक्तिने खरेखर जाणे
अने पर्यायमां तेनुं निर्मळ परिणमन न थाय एम बने ज नहि.
अहीं उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व शक्तिनुं वर्णन चाले छे. उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्वशक्ति तो जडमां पण छे, परंतु
तेनी शक्ति तेनामां रही, आत्मामां तेनुं नास्तिपणुं छे. अहीं तो आत्माना ज्ञानमात्र भावनी साथे रहेली
शक्तिओनुं आ वर्णन छे. ज्ञानमात्रभावनी साथे आ शक्तिओ परिणमे छे, जेने ज्ञानमात्रभावनी खबर नथी
ने एकला विभावनुं ज परिणमन वर्ते छे तेने शक्तिनुं खरुं परिणमन नथी. पर्यायना क्रमने आडोअवळो फेरवी
नांखवानी वात तो दूर रही, परंतु पोतानी पर्यायना क्रममां जेने एकला विभावनुं ज परिणमन छे तेने पण
वस्तुना क्रम–अक्रमस्वभावनी खबर नथी. वस्तुना क्रम–अक्रमस्वभावने जाणे तो स्वसन्मुख परिणमन थया
विना रहे नहि, एटले तेना क्रममां एकलुं विभाव परिणमन रहेज नहि, पण साधकदशा थई जाय. विभाव
परिणमनमां क्रमपणुं होवा छतां, ते आत्मानी त्रिकाळी शक्तिना अवलंबने थयेलुं परिणमन नथी एटले ते
खरेखर आत्मा ज नथी.
उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व नामनी शक्ति एक छे. ने क्रम–अक्रमरूप वर्तन तेनुं कार्य छे; पण तेथी कांई एकली
उत्पाद–व्यय–ध्रुवत्व शक्तिमां ज क्रम–अक्रमपणुं छे ने बीजा गुणोमां क्रम अक्रमपणुं नथी–एम नथी. उत्पाद–
व्यय–ध्रुवत्व–शक्ति द्रव्यनी छे एटले द्रव्यना बधा गुणोमां पण ते व्यापक छे, तेथी दरेक गुण गुणपणे ध्रुव
रहीने क्रमवर्ती पर्यायपणे परिणमे–एवुं क्रम–अक्रमपणुं दरेक गुणमां पण छे. अने आवा द्रव्यनो आश्रय लईने
परिणमतां शक्तिनुं खरुं (सम्यक्, निर्मळ) परिणमन थाय छे. आ रीते द्रव्य–गुण–पर्याय अभेद थईने
परिणम्या तेने ज खरेखर आत्मा कहेवाय छे. उत्पाद–व्यय–ध्रुवस्वरूप समजतां ध्रुवना आश्रये पर्याय निर्मळ
परिणमवा मांडे छे.
द्रव्य ध्रुवपणे रहीने समये समये पर्याय पलटे छे, दरेक गुण पण ध्रुव रहीने पर्याय पलटे छे, ने पर्याय
नियमित क्रमप्रमाणे वर्ते छे, आ रीते वस्तु क्रम–अक्रम पणे वर्तवाना स्वभाववाळी छे; क्रम–अक्रमरूप वर्तन कहो
के उत्पाद–व्यय–ध्रुवता कहो; क्रम ते उत्पाद–व्यय सुचवे छे ने अक्रम ते ध्रुवता सूचवे छे. विकारी पर्याय के
निर्मळपर्याय ते दरेक पोतपोताना क्रममां ज वर्ते छे, तेमांथी कोई पण पर्यायना निश्चित–क्रमने आघोपाछो
फेरववानुं माने तो तेने वस्तुस्वरूपनी खबर नथी, ज्ञायकस्वभावनी खबर नथी. आमां खास विशेषता ए छे
के वस्तुना आवा स्वभावनो जे निर्णय करे तेने पोतामां निर्मळपर्यायनो क्रम शरू थई ज जाय छे.
स्वभावशक्तिनी प्रतीत थतां तेना आश्रये निर्मळ पर्याय परिणमवा मांडे छे. पछी साधकदशामां अल्प विकारनुं
परिणमन रह्युं तेनो ते ज्ञाता छे, विकारनो खरेखर कर्ता नथी तेमज ते पर्यायना क्रमने आघोपाछो फेरववानी
बुद्धि पण नथी. जुओ, कोईपण शक्तिथी आत्मानो निर्णय करतां ज्ञान अंतर्मुख थईने परिणमे छे, ए ज तेनुं
फळ छे.
–चालु