Atmadharma magazine - Ank 139
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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“जैन गनमां सुवर्णना सूर्यनो उदय”
‘सुवर्णनो सूर्य’ अने एनो दिव्य प्रकाश
[आजथी ६प वर्ष पहेलांं...वैशाख सुद बीजने रविवारे]
जैनशासनना पुनित गगनमां आजे एक चकचकता चैतन्यभानुनो उदय थयो... आजे सुवर्णनो सूर्य
ऊग्यो.
जैन गगनभानु कहान गुरुदेवनी पवित्र मुद्रा चैतन्य तेजथी चळकी रही छे, आनंदमय सुप्रभात त्यां
शोभी रह्युं छे, अने ए सूर्यनां वचन–किरणो आत्मिकशौर्यना झगझगाटथी भव्यजीवोने माटे मुक्तिनो मार्ग
प्रकाशित करी रह्या छे. ते सूर्यकिरणो अपूर्व चमक भरेलां ने शौर्यप्रेरक छे, विभावोना पडदाने भेदीने अंदरना
परमात्म स्वरूपने ते प्रकाशित करे छे, अने ते परमात्मस्वरूपनी प्राप्ति माटे जीवना शौर्यने ऊछाळे छे के अरे
जीव! तारो आत्मा नमालो के तुच्छ नथी पण सिद्ध परमात्मा जेवा पूर्ण सामर्थ्यवाळो प्रभु छे... एना लक्षे
तारा आत्मवीर्यने ऊपाड. अहो, जे ज्ञानभानुना एक वचनकिरणमां पण आटलुं आत्मतेज प्रकाशी रह्युं छे, तो
अंतरमां ते ज्ञानभानुनो झगमगाट केवो दिव्य आनंदमय हशे!! खरेखर ज्ञानभानुं गुरुदेवे पोताना दिव्य
ज्ञानप्रकाशवडे जैनशासनना आकाशने झगमगाव्युं छे अने घोर अज्ञानअंधकारने दूर करीने आनंदमय
सुप्रभात खीलाव्युं छे.
हे साधर्मी बंधुओ! चालो, सुप्रभातना ए सोनेरी सूर्यने भक्ति–दीपकथी सन्मानीए अने एनां
दिव्यकिरणोने झीलीने आत्मामां ज्ञानप्रकाश प्रगटावीए.
जैनशासनरूपी आकाशमां दिव्य प्रकाश करीने आनंदमय सुप्रभात फेलावतो
आ चैतन्यभानु सदा जाज्वल्यमान रहो.
जैन गगननो आ सोनेरी सूरज सहस्त्र किरणोथी सदा मुक्तिमार्गने प्रकाश्या करो...