आ छे गुरुदेवनी जन्मभूमि
आ वैशाख सुद बीज ए पू. गुरुदेवना जन्मनो मंगलदिवस! आ आनंद प्रसंगे, पू. गुरुदेवना
ज श्रीमुखथी नीकळेलुं आनंदनी जन्मभूमि दर्शावतुं प्रवचन आपतां अमने आनंद थाय छे.
‘भगवान परमात्माना सुखना अभिलाषी जीवने शुद्धअंतःतत्त्वना आनंदनुं जन्मभूमिस्थान जे
निज शुद्धजीवास्तिकाय तेनाथी ऊपजतुं जे परमश्रद्धान ते ज सम्यग्दर्शन छे. ’ जुओ, आ आत्माना
आनंदनुं जन्मभूमिस्थान! आमां सम्यग्दर्शननी अलौकिक व्याख्या छे. आत्माना आनंदनुं
जन्मभूमिस्थान जे शुद्धजीवास्तिकाय तेमांथी ज सम्यग्दर्शन ऊपजे छे, क्यांय बहारना आश्रयथी
सम्यग्दर्शन ऊपजतुं नथी.
आ भगवान परमात्मा पोते अतीन्द्रिय सुखनो सागर छे, ते परमात्माना सुखनो जे
अभिलाषी छे एवा जीवने सम्यग्दर्शन थाय छे तेनी आ वात छे; सम्यग्दर्शन थतां ज तेने आनंदना
विलासनो जन्म थाय छे. ते आनंदनुं जन्मभूमिस्थान कयुं? ––के पोतानो शुद्ध जीवस्वभाव ज ते
आनंदनी उत्पत्तिनुं जन्मभूमिस्थान छे. आवा शुद्ध आत्मानी परम श्रद्धा करवी ते ज सम्यग्दर्शन छे.
सम्यग्दर्शन थतां ज, भगवान सिद्ध परमात्माने जेवुं सुख छे तेवा ज सुखनो अंश समकितीने
पोताना वेदनमां–स्वादमां आवी जाय छे; अहो! मारा असंख्य प्रदेशे आनंदनो जन्म थयो!! मारा
आत्माना असंख्य प्रदेशो आवा ज आनंदथी भरपूर छे. ––आवी अंतर्मुख प्रतीत ते सम्यग्दर्शन छे.
अतीन्द्रिय आनंदनी उत्पत्तिनुं धाम एवी जे शुद्ध जीवसत्ता तेनी निर्विकल्प प्रतीति ते सम्यग्दर्शन छे.
पोतानुं असंख्यप्रदेशी शुद्धजीवास्तिकाय ते शुद्ध अंतर्तत्त्वना विलासनुं–आनंदनुं जन्मभूमिस्थान छे,
–पण कोने ते आनंदनो जन्म थाय? –के जे जीव भगवान परमात्माना सुखनो अभिलाषी छे तेने; जेने
ईन्द्रिय विषयोनी के पुण्यनी मीठास नथी पण शुद्ध तत्त्वना आनंदनी ज अभिलाषा छे एवो जीव अंतर्मुख
थईने आनंदनो अनुभव करे छे. शक्तिमांथी आनंदनो नवो जन्म थाय छे. आ आनंदनी उत्पत्तिनी
जन्मभूमि कई? –निज शुद्धजीवास्तिकाय असंख्यप्रदेशी ते ज आत्माना आनंदनी जन्मभूमि छे.
जुओ, आ जन्मभूमि! पेटमां होय तेमांथी जन्म थाय, तेम आत्माना अंतरपेटमां
आनंदस्वभाव भर्यो छे तेमांथी ज आनंदनो जन्म थाय छे. अरे जीव बहारमां तारो आनंद नथी, तारो
आत्मा ज तारा आनंदनी जन्मभूमि छे. अंतरना आनंदना विलासनुं उत्पत्तिस्थान पोतानुं शुद्ध
परमात्मतत्त्व ज छे. तेनाथी ऊपजती जे परम श्रद्धा ते सम्यग्दर्शन छे. अहो! आवुं सम्यग्दर्शन थतां
आत्माना प्रदेशे प्रदेशे आनंदनो जन्म थयो, असंख्य प्रदेशो सुखमां डुबी गया. आनंदनुं जन्मधाम
असंख्यप्रदेशी निज परमात्म तत्त्व ते ज सम्यग्दर्शननुं कारण छे. आमां ए वात पण आवी के
सम्यग्दर्शन थतां आवा आनंदनो जन्म थाय छे, असंख्य प्रदेशे अंशे शुद्धता प्रगटी जाय छे.
अंर्तस्वभावना आश्रये जे सम्यक्श्रद्धा प्रगटी तेने ‘परम श्रद्धान’ कहीने अहीं मोक्षमार्गनुं निश्चय
सम्यग्दर्शन बताववुं छे. अंतरमां आवी दशा प्रगट करे त्यारे तो चोथा गुणस्थाननो अविरति
सम्यग्द्रष्टि थाय, ने तेने धर्मनी शरूआत थाय. आवा निश्चय सम्यग्दर्शन वगर मोक्षमार्गनी के धर्मनी
शरूआत पण थती नथी.
सम्यग्दर्शन थवानी लायकातमां अहीं ‘भगवान परमात्माना सुखनो अभिलाषी जीव’ लीधो
छे. मूढ अज्ञानी जीवो शरीरनुं सुख, कुटुंबनुं सुख, खावा पीवानुं सुख, पैसानुं सुख, –एम ईन्द्रिय
विषयोमां सुख माने छे, पण ‘भगवान परमात्मानुं सुख’ केवुं होय तेने जाणता पण नथी. बाह्य
विषयो विनानुं परम–आत्मिक सुख.....आत्मानुं अतीन्द्रिय सुख...तेनी जेने अभिलाषा छे एवा जीवने
आनंदनी जन्मभूमिरूप पोताना शुद्ध आत्मानी श्रद्धा वडे सम्यग्दर्शन थाय छे.....ने ए सम्यग्दर्शन थतां
अपूर्व आनंदनो जन्म थाय छे. आ रीते आनंदनी जन्मभूमिमांथी आनंदनो जन्म थाय ए कर्तव्य छे.
‘जय हो.....ए आनंदभूमिमां जन्मेला अतीन्द्रिय आनंदनो.....’ ‘जय हो.....ए आनंदभोक्ता
सद्गुरुदेवनो.....’