Atmadharma magazine - Ank 139
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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पूजित पंचम भाव परिणति–
कारणशुद्धपर्याय
एक खास महत्त्वनो विषय; समुद्रना द्रष्टांते तेनी समजण.
[] औदयिकभाव, औपशमिकभाव, क्षायोपशमिकभाव के क्षायकभाव ए चारे भावो सापेक्ष
छे, उत्पादव्ययवाळी पर्यायरूप छे.
* जेम समुद्रमां मोजां होय छे तेम आत्मामां रागादि विकारी भावो अथवा तेना अभावथी
प्रगटती निर्मळ पर्यायो छे, ते बधा अपेक्षितभावो छे, क्षणिक उत्पाद–व्ययरूप छे, तेथी ते भावो
सम्यग्दर्शनना आश्रयभूत नथी.
[] आत्मामां एक ‘कारणशुद्धपर्याय’ अथवा विशेष पारिणामिकभाव छे ते निरपेक्ष छे, तेमां
उदयादिनी अपेक्षा नथी; तेने निरपेक्षपर्याय अथवा ध्रुवपर्याय पण कहेवाय छे.
* जेम समुद्रमां पाणीना दळनी सपाटी एक सरखी होय छे तेम आत्मामां ‘कारणशुद्धपर्याय’
छे, ते सदा एक सरखी छे, तेने उदयादिनी अपेक्षा लागती नथी, ते विशेष पारिणामिकभावरूप छे,
आत्मामां सदा सद्रशपणे वर्ते छे. आ कारणशुद्धपर्याय दरेक गुणमां पण छे.
[] आत्माना त्रिकाळी द्रव्य–गुणरूप सामान्य पारिणामिकभाव, अने वर्तमान
कारणशुद्धपर्यायरूप विशेष पारिणामिकभाव, ए बंने थईने पारिणामिकभावनी पूर्णता छे. तेने
निरपेक्षस्वभाव भाव अथवा शुद्ध निरंजन एकरूप अनादिनिधनभाव पण कहेवाय छे.
* जेम समुद्रमां पाणीनुं दळ, पाणीनो शीतळ स्वभाव अने पाणीनी सपाटी, ––ए त्रणे
अभेदरूप ते समुद्र छे, ते त्रणे हमेशां एवाने एवा ज रहे छे; तेम आत्मामां, –आत्मद्रव्य, तेना
ज्ञानादि गुणो, अने तेनुं सद्रशरूप ध्रुव–वर्तमान अर्थात् कारणशुद्धपर्याय–ए त्रणे थईने वस्तुस्वरूपनी
पूर्णता छे, ते ज परम पारिणामिकभाव छे, अने ते ज सम्यग्दर्शनना आश्रयभूत छे.
जेम “समुद्रनी सपाटी” एम बोलाय छतां––समुद्रनुं पाणी, तेनी शीतळता अने तेनी वर्तमान
एकरूप सपाटी–ए त्रणे जुदां नथी; तेम आत्मामां द्रव्य–गुण ते सामान्य पारिणामिक अने तेनी
कारणशुद्धपर्याय ते विशेष पारिणामिक एम कहेवाय छतां, द्रव्य, गुण अने तेनुं ध्रुवरूप वर्तमान ए त्रणे
(अर्थात् सामान्य पारिणामिक अने विशेष पारिणामिक) खरेखर जुदा नथी पण अभेद छे, ते ज
वस्तुस्वरूपनी पूर्णता छे, तेना ज आश्रये सम्यग्दर्शनादि थाय छे.
विशेष स्पष्टता माटे सामुं पानुं जुओ.