विशेष स्पष्टीकरण
(१) वस्तुस्वरूपमां द्रव्य गुण पर्याय जुदा जुदा नथी.
(२) जे द्रव्य–गुण तथा तेनी निरपेक्ष कारणशुद्धपर्याय छे ते त्रिकाळ एकरूप छे, तेमां सदाय
सद्रश परिणमन छे. अपेक्षित पर्यायमां उत्पाद–व्ययरूप विसद्रश परिणमन छे, संसार के मोक्ष बंने
पर्यायनो समावेश अपेक्षित पर्यायमां थाय छे.
(३) ज्यारे ते अपेक्षित पर्यायनुं वलण ध्रुववस्तु तरफ–परम पारिणामिकभाव तरफ–जाय
त्यारे, ते ध्रुव वस्तु एकरूप संपूर्ण होवाथी, त्यां ते पर्यायनो उपयोग स्थिर रही शके छे, अने जेम जेम
ते स्थिर रहे छे तेम तेम ते पर्यायनी निर्मळता वधती जाय छे.
(४) आ परमपारिणामिकभावना स्वरूपने मानवुं––श्रद्धामां लेवुं ते ज सम्यग्दर्शन छे.
(प) सम्यग्दर्शनना ध्येयरूप परमपारिणामिक भाव ध्रुव छे, अने तेनी साथे त्रिकाळ अभेदरूप
रहेली कारणशुद्धपर्याय छे तेने ‘पूजित पंचम भाव परिणति’ कहेवामां आवी छे.
(६) द्रव्यद्रष्टिमां जे पर्याय गौण करवानी वात आवे छे ते तो औदयिकादि चार भावोनी
पर्याय समजवी; आ पंचमभावपरिणति अर्थात् कारणशुद्धपर्याय गौण थई शके नहि, केमके ते तो वस्तु
साथे त्रिकाळ अभेद छे. सम्यग्दर्शनादि निर्मळ पर्यायोने द्रव्यगुण अने कारणशुद्धपर्याय–ए त्रणेनी
अभेदतानुं ज अवलंबन छे, त्रणनुं जुदुं जुदुं अवलंबन नथी.
(७) धर्मास्तिकाय वगेरे चार द्रव्योनी पर्याय सदा एकरूप पारिणामिकभावे ज वर्ते छे, तेनो
ज्ञाता तो जीव छे; जीवनी प्रगट पर्यायमां तो संसार–मोक्ष वगेरे विसद्रशता छे, पण ते सिवायनी
एकसद्रश एकरूप निरपेक्ष “कारणशुद्धपर्याय” सदा पारिणामिक भावे वर्ते छे, ते उपाधिरहित छे अने
सर्वे निर्मळ पर्यायो प्रगटवानुं कारण छे, द्रव्यनी साथे ते सदा अभेदपणे वर्ते छे. आ कारणशुद्धपर्यायने
‘परम पारिणामिक भावनी परिणति’ कहीने एम बताव्युं छे के जेवी त्रिकाळ सामान्य वस्तु छे एवुं ज
तेनुं विशेष पण सद्रशपणे वर्ते छे.
(८) आ कारणशुद्धपर्यायनो व्यक्त भोगवटो होतो नथी; भोगवटो तो कार्यपर्यायनो होय छे.
संसार के मोक्ष ते बंने कार्यपर्याय छे.
(९) जगतमां संसार पर्याय, साधकपर्याय के सिद्धपर्याय सामान्यपणे अनादि अनंत छे,... तेम
आ कारणशुद्धपर्याय तो एकेक जीवने अनादि अनंत सद्रशपणे छे, तेनो कदी विरह नथी. आ
कारणशुद्धपर्याय नवी प्रगटती नथी पण तेनुं भान करनार जीवने सम्यग्दर्शनादि कार्य नवुं प्रगटे छे.
(१०) परम कृपाळु पूज्य गुरुदेवश्रीए श्री नियमसार गा. ३ तथा १० थी १प उपरनां
प्रवचनोमां तेमज पं. बनारसीदासजीनी परमार्थ वचनिकामां कहेल ‘आगम–अध्यात्मना स्वरूप’ उपरना
प्रवचनोमां आ विषयनुं घणुं स्पष्टीकरण कर्युं छे, तेना आधारे अहीं संक्षिप्त लख्युं छे. आ विषय सूक्ष्म
अने सीधो गुरुगमे समजवा योग्य छे. जिज्ञासु वांचकोने आ नवा विषयनी कांईक झांई आवे ते माटे
आटलुं प्रसिद्ध कर्युं छे. पू. गुरुदेवनां विस्तृत प्रवचनो हवे पछी ‘आत्मधर्म’ मां प्रसिद्ध थशे.