: १७४ : आत्मधर्म २४८१ : वैशाख :
‘मुक्ति सुंदरीनो नाथ’
[भगवानने भेटवा माटे नीकळेला मोक्षमार्गी मुनिवरोनी अद्भुत दशा!]
(वीर सं. २४८१ फागण सुद बीजना प्रवचनमांथी: नियमसार कळश ८प–८६)
भगवाननो साक्षात् भेटो करवा माटे नीकळेला मोक्षमार्गी
मुनिवरो आनंदना सागरमां झूली रह्या छे, अंतरना चैतन्य दरियामां
तेमने शांतिनी भरती आवी छे.. आनंदनो समुद्र ऊछळ्यो छे...
रोमेरोममां समाधि परिणमी गई छे. आवा मुनि–जाणे के ‘चालता
सिद्ध! ’ एवी एमनी अद्भुत दशा छे. मुक्तिसुन्दरी कहे छे के हुं
आवा शुद्धरत्नत्रयना साधक मुनिवरोने ज वरुं छुं. आवा मोक्षमार्गी
मुनिवरो ज मुक्तिसुन्दरीना नाथ थाय छे.
–– ‘जय हो.. ए मुक्तिसुंदरीना नाथनो! ’
अध्यात्मना सारनो निर्णय जेणे कर्यो छे एटले ज्ञानानंद स्वभाव आत्मानो अंतरमां निर्णय
कर्यो छे, सम्यग्दर्शन–ज्ञान थयुं छे, अने ते उपरांत अंर्तस्वरूपमां लीन थतां शांत–शांत दशा प्रगटी
गई छे–एटले समाधि परिणमी गई छे–सहज वीतरागदशा अंर्तस्वरूपना अवलंबने वर्ते छे,
उपशांतरस जामी गयो छे, ––आवा मोक्षमार्गी मुनिवरो वीतरागी समिति वडे संसारनी
कलेशजाळने बाळी नाखीने मुक्तिसुंदरीना नाथ थाय छे.
आजे भगवान सीमंधर परमात्मानो अहीं भेटो थयो छे. खरेखर भगवाननो भेटो केम
थाय? –पहेलांं अंतर्मुख थईने चिदानंद भगवान आत्मानी प्रतीत करे–श्रद्धा करे, पछी तेमां एकाग्र
थतां आत्मामां भगवाननो भेटो थाय छे; तेना आत्मामां भगवान पधार्या. आत्मामां लीनता वडे
चिदानंद भगवानने पकडीने मुनिवरो संसारना कलेशने मूळमांथी उखेडी नांखे छे, ने भगवाननो
साक्षात् भेटो करे छे अर्थात् पोते ज परमात्मा थई जाय छे.
जुओ, आ मोक्षमार्गी मुनिओनी दशा! आवो परमेश्वरनो मार्ग छे. परमेश्वरनो मेळाप केम
थाय? ... भगवाननो भेटो केम थाय? तेनी आ वात छे. आवा मुनिवरो परमेश्वरनो भेटो करवा
नीकळ्या छे. तेमने श्रद्धा–ज्ञानमां तो परमेश्वरनो साक्षात् भेटो थई गयो छे, ने अंतरमां लीन थईने
पूर्णानंदी परमेश्वरपदने साधी रह्या छे.
अंतरना चैतन्यदरियामां मुनिवरोने शांतिनी भरती आवी छे, आनंदनो समुद्र ऊछळ्यो छे;
मुनिओ आनंदना सागरमां झूली रह्या छे, जेना