Atmadharma magazine - Ank 140
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: २०४ : आत्मधर्म : १४०
ने जैनदर्शनमां पण आ निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र सिवाय बीजो कोई मोक्षमार्ग नथी. निश्चय
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र स्वरूप जे शुद्धरत्नत्रय छे ते ज मोक्षमार्ग छे, ते ज ‘नियमसार’ छे; आ सिवाय
पराश्रये जेटला भावो थाय ते कोई मोक्षमार्ग नथी, व्यवहार रत्नत्रयनो शुभ विकल्प पण परना आश्रये थाय
छे तेथी ते पण मोक्षमार्ग नथी. अहीं नियम साथे ‘सार’ कहीने आचार्यदेवे ते बधाय पराश्रित भावोने
मोक्षमार्गमांथी बातल करी नाख्या छे. आ रीते, शुद्धरत्नत्रयथी विपरीत एवा व्यवहाररत्नत्रयना विकल्पोनो
पण परिहार करीने निश्चयरत्नत्रयरूप जे मोक्षमार्ग छे तेनुं आ शास्त्रमां वर्णन कर्युं छे. जिनशासनमां तो
आवो मोक्षमार्ग सर्वज्ञदेवे कह्यो छे.
निश्चयरत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग छे ते मोक्षनुं कारण छे. जुओ, आ पण व्यवहार छे.–कई रीते? के
मोक्षमार्गरूप जे पर्याय छे तेनो व्यय थईने मोक्षपर्याय प्रगटे छे, ते मोक्षपर्याय ध्रुवस्वभावमांथी प्रगटे छे तेथी
निश्चयथी तो ध्रुवपरमात्मा ज मोक्षनुं कारण छे, ने मोक्षमार्गनी पर्यायने मोक्षनुं कारण कहेवुं ते व्यवहार छे.
निश्चयरत्नत्रयने मोक्षमार्ग कहेवो ते कांई व्यवहार नथी, ते मोक्षमार्ग तो निश्चयथी ज छे, पण तेने मोक्षनुं
कारण कहेवुं ते व्यवहारथी छे. अरे! निश्चयरत्नत्रयने मोक्षनुं कारण कहेवुं ते पण ज्यां व्यवहार छे तो पछी
व्यवहार रत्नत्रयनी तो शी वात? व्यवहाररत्नत्रय तो मोक्षनुं कारण छे ज नहि. आत्माना सहज स्वभावमां
रहेलो जे ‘कारणनियम’ छे ते सादा शुद्ध छे, ते कारणनियमनुं भान करीने तेनो आश्रय करतां ‘कार्यनियम’
एटले शुद्धरत्नत्रयरूप मोक्षमार्ग तेम ज मोक्षदशा प्रगटी जाय छे. अने ए ज कर्तव्य छे.
‘कारण’ अने ‘कार्य’नी अद्भुत संधि दर्शावनारा संतोने नमस्कार.
ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा
वैशाख सुद बीजना रोज पू. गुरुदेवना
जन्मोत्सव प्रसंगे लीमडीना भाईश्री कान्तिलाल
हरिलाल शाह तथा तेमनां धर्मपत्नी कान्ताबेन ––
ए बंनेए सजोड आजीवन ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा पू.
गुरुदेव पासे अंगीकार करी छे. प्रतिज्ञा बाद तेमणे
पू. गुरुदेव प्रत्ये भक्तिभाव व्यक्त कर्यो हतो.
तेओ हाल मुंबई रहे छे, ने त्यांना मुमुक्षुमंडळना
एक उत्साही कार्यकर छे. प्रतिज्ञा लेनार बंनेने
धन्यवाद!
प्रकाशित हो चुका है!
आपके स्वाध्याय के लिये
तत्त्वज्ञानतरंगिणी [हिन्दी]
सजिल्द २–६–० अजिल्द २–०–०
प्राप्ति स्थान
जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट
सोनगढ़ [सौराष्ट्र]