एम कहीने सम्यग्ज्ञानमां अस्ति नास्ति बंनेनुं वर्णन लीधुं. ज्यारे श्रद्धा तो निर्विकल्प छे तेना विषयमां बे भेद
नथी, एटले सम्यग्दर्शनना वर्णनमां एकली अस्तिनी ज वात लीधी छे. आनंदनी उत्पत्तिनुं धाम एवी जे शुद्ध
जीवसत्ता तेनी निर्विकल्प प्रतीति ते सम्यग्दर्शन छे.
जेने इंद्रियविषयोनी के पुण्यनी मीठास नथी पण शुद्ध तत्त्वना आनंदनी अभिलाषा छे एवो जीव अंतर्मुख
थईने आनंदनो अनुभव करे छे. शक्तिमांथी आनंदनो नवो जन्म थाय छे. आ आनंदनी उत्पत्तिनी
जन्मभूमि कई? –निज शुद्धजीवास्तिकाय असंख्यप्रदेशी ते ज आत्माना आनंदनी जन्मभूमि छे. जुओ, आ
जन्मभूमि! पेटमां होय तेमांथी जन्म थाय, तेम आत्माना अंतरपेटमां आनंदस्वभाव भर्यो छे तेमांथी ज
आनंदनो जन्म थाय छे. अरे जीव! बहारमां तारो आनंद नथी. तारो आत्मा ज तारा आनंदनी जन्मभूमि
छे. अंतरना आनंदना विलासनुं उत्पत्तिस्थान पोतानुं शुद्ध परमात्मतत्त्व ज छे. तेनाथी ऊपजती जे
परमश्रद्धा ते सम्यग्दर्शन छे. अहो! आवुं सम्यग्दर्शन थतां आत्मना प्रदेशे प्रदेशे आनंदनो जन्म थयो,
असंख्यप्रदेशो सुखमां डुबी गया. आनंदनुं जन्मधाम असंख्यप्रदेशी निज परमात्मतत्त्व ते ज सम्यग्दर्शननुं
कारण छे. आमां ए वात पण आवी के सम्यग्दर्शन थतां आवा आनंदनो जन्म थाय छे, असंख्यप्रदेशो अंशे
शुद्धता प्रगटी जाय छे. अंर्तस्वभावना आश्रये जे सम्यक्श्रद्धा प्रगटी तेने ‘परमश्रद्धान’ कहीने अहीं
मोक्षमार्गनुं निश्चय सम्यग्दर्शन बताववुं छे. अंतरमां आवी दशा प्रगट करे त्यारे तो ते जीव चोथा
गुणस्थाननो अविरति सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा थाय, ने मोक्षमार्गनी शरूआत थाय. आवा निश्चय–सम्यग्दर्शन
वगर मोक्षमार्गनी के धर्मनी शरूआत पण थती नथी.
पण ‘भगवान परमात्मानुं सुख’ केवुं होय तेने जाणता पण नथी. बाह्यविषयो विनानुं परम–आत्मिक
सुख...आत्मानुं अतीन्द्रियसुख...तेनी जेने अभिलाषा छे एवा जीवने आनंदनी जन्मभूमिरूप पोताना
शुद्धआत्मानी श्रद्धा वडे सम्यग्दर्शन थाय छे. आ सम्यग्दर्शन पण मोक्षमार्गनो एक अवयव छे; मोक्षने माटे आ
सम्यग्दर्शन कर्तव्य छे.
एकलो शुद्धआत्मा ज आवे छे. आवा सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञाननी साथे सम्यक्चारित्रनो अंश पण होय छे.
थईने स्थिर थई जवुं ते सम्यक्चारित्र छे. आ सिवाय स्वरूपमांथी खसीने पंचमहाव्रतादि २८ मूळगुण संबंधी
जे शुभराग थाय ते खरेखर चारित्र नथी, ते तो औदयिकभाव छे; ज्ञानदर्शनमय कारणस्वभावनी सन्मुख
थईने तेना सम्यग्दर्शन अने सम्यज्ञान जेने थाय छे तेने तेमां ज अविचळ स्थिरतारूप सम्यक्चारित्र होय छे.
कारण परमात्मामां आवी स्थिरता ते ज मोक्षमार्गनुं सम्यक्चारित्र छे, आ सिवाय शुभरागरूप व्यवहारचारित्र
ते मोक्षमार्ग नथी.
मोक्षमार्ग छे ज नहि,