Atmadharma magazine - Ank 140
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष बारमुं : सम्पादक : जेठ
अंक सातमो रामजी माणेकचंद दोशी २४८१
स्वयंभू भगवान
धर्म माटे बाह्यसाधनी शोधमां भटकता जीवोने संतोनो संदेश छे के
“बीजाुं कांई शोध मा.”
शुद्ध उपयोगना प्रसादथी जीव पोते ज स्वयमेव स्वभावथी परिणमीने केवळज्ञानरूप थाय
छे, तेथी ते ‘स्वयंभू’ छे. तेनी प्रशंसा करीने आचार्यदेव समजावे छे के हे जीव! शुद्ध
आत्मस्वभावनी प्राप्ति माटे तारा स्वभाव सिवाय बीजा कोई साधनो साथे तारे खरेखर संबंध
नथी. तारा धर्मने माटे शुद्ध अनंतशक्तिवाळो तारो ज्ञानस्वभाव ज साधन छे, एना सिवाय बीजा
कोई साधन साथे तारा धर्मनो संबंध नथी. तेथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप धर्मनी प्राप्तिने माटे हे
जीव! तुं शुद्धअनंतशक्तिसंपन्न तारा ज्ञानस्वभावने ज शोध; एना सिवाय बीजा कोई साधनने
शोधवानी व्यग्रता न कर. तारो शुद्ध ज्ञानानंद स्वभाव ज तारुं स्वतंत्रसाधन छे. ए सिवाय बीजा
कोई साधनने शोधवुं तेमां तारी परतंत्रता छे. ‘स्वयंभू’ एवो तारो शुद्धअनंतचैतन्यशक्ति संपन्न
आत्मस्वभाव ज सर्व प्रकारे साधनरूप थईने स्वयं धर्मरूपे परिणमवा समर्थ छे, माटे ‘स्वयंभू
भगवान’ एवा तारा आत्माने ज अंतर्मुख थईने शोध! तारा अनंतशक्तिवाळा शुद्धज्ञानस्वभाव
सिवाय बीजा कोईपण साधनने न शोध. स्वभावने ज साधनपणे अंगीकार करीने परिणमनारा
जीवो स्वतंत्रपणे स्वयं धर्मरूप थाय छे; ने धर्म माटे बहारना साधनोने शोधनारा जीवो परना
आश्रये परिणमता थका व्यग्रताथी परतंत्र थाय छे. माटे जेणे स्वाधीन धर्मरूप थवुं होय ते पोताना
शुद्ध ज्ञानानंदस्वभावने ओळखीने तेने एकने ज साधनपणे अंगीकार करो, तेनो एकनो ज आश्रय
करो, ने बाह्य साधनोनो आश्रय छोडो...एम संतोनो उपदेश छे.
तारा शुद्ध आत्मस्वभावनी प्राप्तिने माटे तारा अंतरमां स्वभावसामग्री परिपूर्ण छे, छतां
अरे जीव! बाह्यमां सामग्रीने शोधीने तुं नकामो केम व्यग्र थाय छे? तारी पासे ज अंतरमां तारुं
साधन पड्युं छे, तेने शोधीने तेनो ज आश्रय कर...
बीजुं कांई शोध मा!
[प्रवचनसार गा. १६ उपरना पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी]
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ, (सौराष्ट्र)