आत्मस्वभावनी प्राप्ति माटे तारा स्वभाव सिवाय बीजा कोई साधनो साथे तारे खरेखर संबंध
नथी. तारा धर्मने माटे शुद्ध अनंतशक्तिवाळो तारो ज्ञानस्वभाव ज साधन छे, एना सिवाय बीजा
कोई साधन साथे तारा धर्मनो संबंध नथी. तेथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप धर्मनी प्राप्तिने माटे हे
शोधवानी व्यग्रता न कर. तारो शुद्ध ज्ञानानंद स्वभाव ज तारुं स्वतंत्रसाधन छे. ए सिवाय बीजा
कोई साधनने शोधवुं तेमां तारी परतंत्रता छे. ‘स्वयंभू’ एवो तारो शुद्धअनंतचैतन्यशक्ति संपन्न
आत्मस्वभाव ज सर्व प्रकारे साधनरूप थईने स्वयं धर्मरूपे परिणमवा समर्थ छे, माटे ‘स्वयंभू
भगवान’ एवा तारा आत्माने ज अंतर्मुख थईने शोध! तारा अनंतशक्तिवाळा शुद्धज्ञानस्वभाव
सिवाय बीजा कोईपण साधनने न शोध. स्वभावने ज साधनपणे अंगीकार करीने परिणमनारा
जीवो स्वतंत्रपणे स्वयं धर्मरूप थाय छे; ने धर्म माटे बहारना साधनोने शोधनारा जीवो परना
आश्रये परिणमता थका व्यग्रताथी परतंत्र थाय छे. माटे जेणे स्वाधीन धर्मरूप थवुं होय ते पोताना
शुद्ध ज्ञानानंदस्वभावने ओळखीने तेने एकने ज साधनपणे अंगीकार करो, तेनो एकनो ज आश्रय
साधन पड्युं छे, तेने शोधीने तेनो ज आश्रय कर...