Atmadharma magazine - Ank 140
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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पू. गुरुदेवनो ६मो जन्मोत्सव
अनेक आत्मार्थी जीवोना जीवन–आधार, अने भवभ्रमणथी थाकी गयेला जीवोना विश्रामस्थान, परम
पूज्य गुरुदेवनो ६६मो मंगल–जन्मोत्सव आ वैशाख सुद बीजे विधविध उल्लास अने भक्तिपूर्वक ऊजवायो
हतो. आ जन्मोत्सव–प्रसंगनी उजवणी साथे ज सोनगढनुं जिनमंदिर मोटुं कराववानी आनंदकारी जाहेरात थई
ए आ वखतनी खास विशेषता छे.
वैशाख सुद बीजनी वहेली सवारमां छासट दीपकोना झगमगाटथी चारे दिशामां प्रकाश फेलायो, ...मंगल
घंटानाद थया...वाजिंत्रो वाग्यां...ए रीते जन्मोत्सवनी वधाई मळतां ज भक्तमंडळ देव–गुरु–शास्त्रनां दर्शन
करवा आव्युं...ऊलटभेर जन्मनी वधाई गातां गातां स्वाध्यायमंदिरने त्रण प्रदक्षिणा करी ने पछी गुरुदेवना
दर्शन–स्तुति करी. त्यार बाद प्रभातफेरी नीकळी. सोनगढमां आ प्रकारनी प्रभातफेरी पहेलवहेली ज नीकळती
होवाथी सौने घणो उल्लास हतो. जिनमंदिरमां पूजन बाद ‘प्रवचनयात्रा’ नीकळी हती. त्यार बाद पू. गुरुदेवे
अद्भुत प्रवचन द्वारा ज्ञान–रत्नोनी वृष्टि करी...तेमांथी ‘६६ रत्नो’ झीलीने आ अंकमां आपवामां आव्या छे.
प्रवचन बाद भक्तजनो तरफथी पू. गुरुदेवना महान उपकारो व्यक्त करीने जन्मोत्सवनो महिमा व्यक्त
करवामां आव्यो हतो. तेमज जन्मोत्सवनी खुशाली दर्शावता भक्ति भरेला अनेक तार –रंगुन, कलकत्ता, मुंबई,
अमदावाद, मूडबीद्री, लाडनू, भरूच, पालेज, जामनगर, राजकोट, वांकानेर, मोरबी, वढवाण सीटी, सुरेन्द्रनगर,
जोरावरनगर, लीमडी, बोटाद, राणपुर, लाठी, उमराळा वगेरे स्थळोना भक्त मंडळ तरफथी आवेला ते
संभळाववामां आव्या हता. त्यार बाद सोनगढनुं हालनुं जिनमंदिर मोटुं कराववानी वधामणी आपवामां
आवी हती ने ते माटेना फंडनी रकमो जाहेर करवामां आवी हती, साथे साथे ६६ मा जन्मोत्सव निमित्तेना
मेळवाळी रकमो पण जाहेर करवामां आवी हती. आ जन्मोत्सव फंडनी रकमो पण जिनमंदिर माटे ज
उपयोगमां लेवानुं नक्की थयुं होवाथी बंने फंडनी विगत एक साथे आ अंकमां आपवामां आवी छे.
बपोरना प्रवचन पछी, जिनमंदिरमां भक्ति पण घणा उल्लासपूर्वक करावी हती. भक्तिमां पहेलां
जिनमंदिरनी वधाई, ने पछी जन्मोत्सवनी वधाई गवडावी हती. जन्मोत्सवनी वधाई वखते खास उल्लासने
लीधे प. बेनश्रीबेनजी ऊभा ऊभा भक्ति गवडावता हता. सांजे सीमंधरप्रभुजीनी आरती सोना–चांदीना ६६
दीपको वडे उतारवामां आवी हती. रात्रे दीपकोनी रोशनी, तेमज आश्रममां विधविध प्रकारे भक्ति थई हती.
आ रीते घणा उमंग अने आनंदपूर्वक पू. गुरुदेवनो जन्मोत्सव ऊजवायो हतो. अहो! गुरुदेवनो आ जन्म
भक्तजनोने महा कल्याणकारी छे, जेमना अंतरमांथी ज्ञाननी हाकल पडतां ज मोहवादळ तूटी पडे छे एवा पू.
गुरुदेवनो ज्ञानसूर्य सोळ कळाए परिपूर्ण प्रकाशो ने भव्यजीवोना अज्ञान–अंधकारने नाश करीने सर्वत्र
ज्ञानप्रकाश फेलावो!
थोडीक स्पष्टता
“कारण शुद्धपर्याय”नां प्रवचनोनी लेखमाळा आ अंकथी शरू थाय छे. आ विषय तद्न जुदी शैलीनो छे;
छतां आ वखते प्रवचनोमां पू, गुरुदेवे खास स्पष्टीकरण कर्युं होवाथी, अने घणा जिज्ञासुओ तरफथी तेनी
आग्रहभरी मांगणी आववाथी ते ‘आत्मधर्म’मां प्रसिद्ध करवामां आवे छे. आ प्रवचनो प्रसिद्ध थतां पहेलां
वांची जवा पू. गुरुदेवे कृपा करी छे.
आ विषयमां क्रमबद्धपर्याय करतां पण केटलीक वधारे सूक्ष्मता छे...माटे, जिज्ञासुओए मात्र परोक्ष
वांचनथी ज आ वात समजी जवानो संतोष न मानतां, सीधी गुरुगमे समजवानुं लक्ष राखवानी खास
भलामण छे.
वळी पू. गुरुदेवना आवा उच्च आध्यात्मिक प्रवचनोमांथी चोरी करीने केटलाक मानार्थी– उपदेशको ए
वात पोताना नामे के पोताना मानेला कुशास्त्रना नामे जाहेर करे छे, ने ए रीते भोळा जीवोने भरमाववा
प्रयत्न करे छे; एवा दंभी उपदेशकोथी सावधान रहेवा सौ जिज्ञासुओने भलामण छे. कुंदकुंदभगवाननी दि. जैन
आम्नायनी परंपरा सिवाय बीजा कोईमां पण आत्मस्वभावनी आवी वात यथार्थ होय ज नहि.