‘६’
मा जन्मोत्सव प्रसंगे पू. गुरुदेवना श्रीमुखथी थयेल रत्नवृष्टिमांथी
‘६’ रत्न
[प्रवचनसर गथ २७]
१ आ ज्ञान छे ते आत्मा छे; ज्ञान एटले जाणवानो स्वभाव ते आत्मा ज छे,– एम
जिनदेवनो मत छे.
२ जे जाणवानो स्वभाव छे तेने आत्मा साथे तद्रूपता छे, बीजा कोई साथे तेने तद्रूपता नथी.
३ आत्मा पोते ज्ञानस्वभावपणे परिणमीने जाणे छे, आत्मा पोते परिणमीने केवळज्ञानरूप
थाय छे.
४ ज्ञानने आत्मा साथे एकतानो संबंध छे, एटले आत्मामां अंतर्मुख थईने जाणवानो ज्ञाननो
स्वभाव छे.
प सर्वज्ञ जिननो आवो मत छे के आत्मा पोते ज्ञान छे, ज्ञाननी एकता आत्मा साथे ज छे.
६ पर साथे ज्ञानने एकता नथी एटले आत्माने बीजाना संबंधथी ज्ञाननी उत्पत्ति थाय–एम
नथी.
७ ज्ञानना संबंधने लीधे आत्मा ज्ञानवाळो छे–एम नथी, पण आत्मा पोते जाणनार स्वभावी
होवाथी ज्ञान छे.
८ आत्मा सिवाय रागना के परना संबंधथी ज्ञान उत्पन्न थतुं नथी.
९ आत्मा सिवाय राग साथे के पर साथे ज्ञान कदी एकरूप थयुं ज नथी.
१० ज्ञानने पोताना आत्मा साथे त्रिकाळ एकरूपता छे, आत्माथी कदी जुदाई नथी.
११ आत्माने अने ज्ञानने अनादिअनंत स्वभावसिद्ध समवायसंबंध छे अर्थात् ज्ञानने अने
आत्माने स्वभावथी ज एकता छे.
१२ जुओ, आ जिनेन्द्रभगवाननो मत! आ समजे ते जैनमत समज्यो छे.