Atmadharma magazine - Ank 140
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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: १९२ : आत्मधर्म : १४०
१३ भाई! तारा ज्ञानने आत्मा साथे त्रिकाळ एकतारूप तादात्म्यसंबंध छे.
१४ तारा ज्ञानने पर साथे तो एक क्षण पण तादात्म्यसंबंध नथी, सदाय भिन्नता ज छे.
१प वळी तारी पर्यायमां जे रागादिभाव छे तेनी साथे आत्माने एक समयनो अनित्य
तादात्म्यसंबंध छे.
१६ परंतु ते रागादिभावनेय परनी साथे तो एक समयनो अनित्य तादात्म्यसंबंध पण नथी.
१७ आत्माने पर साथे क्षणिक निमित्त–नैमित्तिकसंबंध छे, पण तादात्म्यसंबंध (एकता) तो छे
ज नहि.
१८ आटला संबंधमांथी आत्माना हितने माटे कयो संबंध आदरणीय छे? ते समजावे छे.
१९ परनी साथे एकतानो संबंध तो कदी छे ज नहि, एटले तेनी वात नथी.
२० विकारनी साथे क्षणिकसंबंध छे, ते आदरणीय नथी केमके ते संबंध जेटला आत्मा नथी.
२१ आत्मा साथे ज्ञाननी एकतानो जे कायमी संबंध छे ते ज आदरणीय छे,– आवो भगवान
जिननो मत छे.
२२ आम समजीने, पर्यायने अंतर्मुख करीने आत्मा साथे जेणे एकता करी तेणे जिनमतने
जाण्यो.
२३ आ समजीने ज्ञानस्वभावी आत्मामां एकता...एकाग्रता थवी ते धर्म छे.
२४ जुओ, आ आत्मामां वळवानी वात छे; आमां एकाग्र थईने समजवुं ते कल्याणनो रस्तो छे.
२प अंदर एकाग्र थईने समजवाना टाणे जेने बीजी ठठ्ठा मश्करी सूझे छे ते जीव ज्ञाननी महा
विराधना करे छे.
२६ जुओ आ सुखी थवानो रस्तो!!
२७ आनंदस्वरूप आत्मा छे; अंतरमां ज्ञान ने आत्मानी एकता निहाळतां अपूर्व आनंद आव्या
विना रहे नहि.
२८ ज्ञानने अंतरमां वाळीने ज्यां आत्मा साथे एकतानो अनुभव थयो त्यां अपूर्व आनंदनुं
वेदन थाय छे.
२९ अतीन्द्रिय आनंद कहो...समकीत कहो...के धर्म कहो, ते केम थाय तेनी आ वात छे.
३० आत्मा वस्तु छे, तेनो त्रिकाळी ज्ञानस्वभाव छे.
३१ ते ज्ञानस्वभावी आत्मा साथे एकता करतां पर्यायमां अतीन्द्रिय आनंद उल्लसे छे.
३२ जुओ आ छे समकीतनो उपाय...आनंदनो उपाय..धर्मनो उपाय...अपूर्व हितनो उपाय.
३३ ज्ञान आत्माने अति नीकटपणे अवलंबीने–अभिन्न प्रदेशपणे रहेलुं छे.
३४ आवुं स्वरूप समजीने एकवार अंतरथी उल्लास लावे तो बेडो पार थई जाय.
३प उल्लासमान वीर्यवंत आ समजवाने माटे पात्र छे.
३६ बहारनी–पैसा वगेरेनी वात सांभळतां उल्लास लावे छे पण तेमां तो आत्मानुं कांई हित के
शांति नथी.
३७ भगवान आत्मा शांतिनो भंडार छे, तेनो उल्लास लावे तो तेमांथी शांति आवे छे.
३८ ज्ञान ने आत्मानी आवी एकता जे समजावे ते ज देव–गुरु–शास्त्र साचां छे.
३९ बहारना आश्रयथी ज्ञाननो लाभ थवानुं जे मनावे ते देव–गुरु के शास्त्र साचां नथी.