१४ तारा ज्ञानने पर साथे तो एक क्षण पण तादात्म्यसंबंध नथी, सदाय भिन्नता ज छे.
१प वळी तारी पर्यायमां जे रागादिभाव छे तेनी साथे आत्माने एक समयनो अनित्य
१७ आत्माने पर साथे क्षणिक निमित्त–नैमित्तिकसंबंध छे, पण तादात्म्यसंबंध (एकता) तो छे
१९ परनी साथे एकतानो संबंध तो कदी छे ज नहि, एटले तेनी वात नथी.
२० विकारनी साथे क्षणिकसंबंध छे, ते आदरणीय नथी केमके ते संबंध जेटला आत्मा नथी.
२१ आत्मा साथे ज्ञाननी एकतानो जे कायमी संबंध छे ते ज आदरणीय छे,– आवो भगवान
२४ जुओ, आ आत्मामां वळवानी वात छे; आमां एकाग्र थईने समजवुं ते कल्याणनो रस्तो छे.
२प अंदर एकाग्र थईने समजवाना टाणे जेने बीजी ठठ्ठा मश्करी सूझे छे ते जीव ज्ञाननी महा
२७ आनंदस्वरूप आत्मा छे; अंतरमां ज्ञान ने आत्मानी एकता निहाळतां अपूर्व आनंद आव्या
३० आत्मा वस्तु छे, तेनो त्रिकाळी ज्ञानस्वभाव छे.
३१ ते ज्ञानस्वभावी आत्मा साथे एकता करतां पर्यायमां अतीन्द्रिय आनंद उल्लसे छे.
३२ जुओ आ छे समकीतनो उपाय...आनंदनो उपाय..धर्मनो उपाय...अपूर्व हितनो उपाय.
३३ ज्ञान आत्माने अति नीकटपणे अवलंबीने–अभिन्न प्रदेशपणे रहेलुं छे.
३४ आवुं स्वरूप समजीने एकवार अंतरथी उल्लास लावे तो बेडो पार थई जाय.
३प उल्लासमान वीर्यवंत आ समजवाने माटे पात्र छे.
३६ बहारनी–पैसा वगेरेनी वात सांभळतां उल्लास लावे छे पण तेमां तो आत्मानुं कांई हित के
३८ ज्ञान ने आत्मानी आवी एकता जे समजावे ते ज देव–गुरु–शास्त्र साचां छे.
३९ बहारना आश्रयथी ज्ञाननो लाभ थवानुं जे मनावे ते देव–गुरु के शास्त्र साचां नथी.