४२ ज्ञान साथे एकमेक एवो आत्मा, सुख वगेरे अनंत स्वभावोनो पण आधार छे;
४३ एटले आत्मामां एकता थतां ज्ञान साथे सुख, श्रद्धा वगेरे अनंत स्वभावो खीले छे.
४४ ज्ञाननी जेम ते श्रद्धा, सुख वगेरे गुणो साथे पण आत्मा एकमेकपणे परिणमी रह्यो छे.
४प जुओ, आमां समजाणुं कांई?... (जी...हा!)
४६ एक साथे आत्मा अनंतस्वभावोपणे परिणमे छे, तेथी आत्मा ज्ञान पण छे, आत्मा सुख
४८ आवा आत्मानी सामे द्रष्टि कर्या वगर बहारमां बीजे कयांय उद्धारना रस्ता नथी.
४९ एक समयनी पर्यायमां विकार साथे क्षणिकसंबंध छे, पण तेटलो आत्मा नथी.
प० त्रिकाळी स्वभावनी द्रष्टिथी तो विकार साथे पण अनित्यनिमित्तनैमित्तिक संबंध ज छे,–एकता
प२ स्वभावमां अत्यंत अभाव होवाथी विकार साथे आत्माने एकता नथी, तेथी तेनो संबंध छूटी शके छे.
प३ परदेशमां कोई साथे क्षणिक संबंध बांध्यो होय ते स्वदेशमां आवतां छूटी जाय छे;
प४ तेम संसारमां परभाव साथे जे क्षणिकसंबंध छे ते स्वभावमां नथी तेथी स्वभावद्रष्टिमां ते संबंध
प६ ‘ज्ञान’ धर्म द्वारा आत्मा ज्ञान छे.
प७ ‘सुख’ धर्म द्वारा आत्मा सुख छे.
प८ ‘प्रत्यक्षसंवेदन’ रूप धर्म द्वारा आत्मा प्रकाश छे.
प९ ‘प्रभुता’ धर्म द्वारा आत्मा परमेश्वर छे... (ईत्यादि)
६० ए प्रमाणे अनंतधर्मो साथे एकतारूप आत्मा छे तेथी अनेकान्त बळवान छे.
६१ भगवान सर्वज्ञदेवना दिव्यध्वनिमां जे प्रवचनो नीकळ्यां तेनो सार आ प्रवचनसारमां छे.
६२ आत्माना अनंतधर्मोमां ज्ञान ते विशेषस्वभाव होवाथी ‘ज्ञान ते आत्मा’ एम कहीने
६४ आवो भगवान जिनेन्द्रदेवनो अनेकान्त मार्ग छे.
६प आ समजीने परथी संबंध तोडवो...ने आत्मा साथे संबंध जोडवो ते अपूर्व धर्म छे.
६६ आवो आत्मा समजे तेनो जन्म सफळ छे.