मांदगी आवी छतां तेमने व्यग्रता जणाती न हती; परम पूज्य सद्गुरुदेवने अने तेओश्रीना
पवित्रबोधने वारंवार याद करतां तेमने प्रसन्नता थती; छेल्ले “अपूर्व अवसर...” संभळावेल,
अने पूज्य गुरुदेवनो फोटो बतावतां प्रसन्नताथी... ध्रूजता हाथे वंदन करीने प्रमोद बताव्यो हतो.
छेल्ला घणा वर्षोथी तेओ अवारनवार सोनगढ आवीने रहेता, सोनगढनुं धार्मिक वातावरण तेमने
बहु गमतुं. काने सांभळवानी तकलीफ होवा छतां पू. गुरुदेवना प्रवचनोमां तेओ होंसथी लाभ
लेता, अने पू. गुरुदेवनी मुद्रा तेमज हाथनी चेष्टाओ उपरथी पण व्याख्याननी केटलीक वातो तेओ
समजी लेता. भक्तिमां पण तेमने बहु प्रमोद आवतो. तेओ घणा मायाळु अने भद्रिक हता. देह
छूटवाना प्रसंगे पण तेमने शांति रही हती. अहो! अनेक जीवोना जीवन–आधार परम पूज्य
गुरुदेवश्रीए भव्य जीवोने जन्ममरणथी बचवानो संजीवनीमंत्र आप्यो छे.... चैतन्यमूर्ति आत्मानुं
देहथी भिन्नपणुं बतावीने, आत्मार्थी जीवोनी नसेनसमां आत्मानो अचिंत्य महिमा रेड्यो छे...
जेना बळे मृत्यु प्रसंगे पण जीवो शांति राखी शके छे... ए पू. गुरुदेवनो परम उपकार छे. ‘बा’
उपर पू. बेनश्रीने पण घणी कृपा हती. पू. बेने बाने कहेल ते मुजब तेओ भुलेश्वरना जिनमंदिरमां
जता अने त्यां प्रभुजीनी सन्मुख एकाग्रताथी बेसीने भगवान थवानी भावना भावता. अहो!
जेम पारसमणिना संगे लोढुं पण सोनुं बनी जाय छे तेम धर्मात्माओनो संग जिज्ञासु जीवोने
खरेखर पारसमणि समान छे.
पाम्या. नानी वयमां पण तत्त्व समजवा माटे तेमने घणी भावना हती. दोढेक वर्ष पहेलांं तेओ
सोनगढ आवीने रहेलां, ते वखते पू. गुरुदेवना अपूर्व सत्समागमनो जीवनमां विशेष लाभ
लेवानी भावना तेमने जागेली... परंतु फरीथी सोनगढ आववानुं बने ते पहेलांं तो तेमनो
स्वर्गवास थई गयो, ने पोतानी अधूरी भावना साथे लईने तेओ चाल्या गया.
नियम विना जेमां अनित्यता लागु पडी जाय छे एवो आ क्षणभंगुर देह जीवने शरणभूत केम
होय? पू. गुरुदेवे बतावेलुं देहथी भिन्न केवळ चैतन्यस्वरूप–के जे ‘ज्ञानानंदे... पूरण... पावन’ ...
छे ते ज एक सर्व प्रसंगोमां सर्वे जीवोने शरणभूत छे.
थतो जाय छे. परम पूज्य गुरुदेव हमेशां ईस्पिताले पधारे छे. पू. गुरुदेव पधारतां जीवणलालजी
महाराजने घणो उल्लास आवे छे, ने ईस्पितालनुं वातावरण भूलाई जईने “ज्ञानानंदे पूरण
पावनो...’ नुं उल्लासभर्युं वातावरण फेलाई जाय छे. पू. गुरुदेवनी अपूर्ववाणी देहना रोगोनुं लक्ष
भूलावीने आत्मानुं लक्ष करावे छे. रोगनी गंभीर पीडा वखते पण श्री जीवणलालजी महाराजे
हिंमतपूर्वक शांति जाळवी छे ते पू. गुरुदेवे बतावेला लक्षने वारंवार घूंट्युं छे, ते प्रशंसनीय छे.