वर्ष बारमुं : सम्पादक : श्रावण
अंक नवमो रामजी माणेकचंद दोशी २४८१
आत्मानी तालावेली
जेने शुद्ध आत्मा समजवानी धगस जागी छे एवा जिज्ञासु जीवने प्रश्न उठे
छे के शुद्ध आत्मानुं केवुं स्वरूप छे? जेम रणमां कोईने पाणीनी तृषा लागी होय,
पाणी पीवानी झंखना थई होय, तेने पाणीनी निशानी सांभळतां केवी तालावेली
थाय! ने पछी पाणी पीतां केटलो तृप्त थाय! तेम जेने आ भवरणमां भटकतां
आत्मानुं स्वरूप जाणवानी झंखना थई छे ते शुद्धआत्मानी वात सांभळतां
आनंदित थाय छे–उल्लासित थाय छे, ने पछी सम्यक्पुरुषार्थ वडे आत्मस्वरूपने
पामीने ते तृप्त थाय छे. शुद्ध आत्मस्वरूपने जाणवानी जेने तीव्र जिज्ञासा थई छे
एवा जीवने आ वात संभळाववामां आवे छे.
आत्मा समजवा माटे जेने अंतरमां खरेखरी धगस अने तालावेली
जागे तेने अंतरमां समजणनो मार्ग थया विना रहे ज नही; पोतानी
धगसना बळे अंतरमां मार्ग करीने ते आत्मस्वरूपने पामे ज.
[समयसार गा. पना प्रवचनमांथी]
वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट सोनगढ, (सौराष्ट्र)