Atmadharma magazine - Ank 142
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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धर्मनी दुकान
जेने धर्म करवो होय तेणे धर्म क्यांथी मळे तेम छे ते शोधवुं जोईए. ज्यां जे माल भर्यो होय त्यांथी ते
माल मळे. आ शरीरनी दुकानमां जडनो माल भर्यो छे, तेनी क्रियामांथी आत्माना धर्मनो माल नहीं मळे. अने
चैतन्यमूर्ति आत्मानी दुकानमां ज्ञान–आनंद वगेरे अनंत गुणोनो खजानो भर्यो छे, तेमांथी ज्ञानादि धर्मनो
माल मळशे, पण विकारनो के जडनी क्रियानो माल तेमांथी नहीं मळे.
जेम अफीणनी दुकाने अफीण मळे पण मावो के हीरा त्यां न मळे. अने कंदोईनी दुकाने मावो, के झवेरीनी
दुकाने हीरा मळे पण त्यां कांई अफीण न मळे. तेम जेने अफीण जेवा विकारी शुभ–अशुभ भावो जोईता होय
तेने आत्माना स्वरूपमां ते मळे तेम नथी, एटले जेने विकारनी रुचि होय ते आत्मानी दुकाने केम चडे? अने
विकारी भावो के जडनी क्रिया ते तो अफीणनी दुकान जेवा छे, तेमांथी चैतन्यना निर्मळधर्मरूपी झवेरात मळी
शके तेम नथी; माटे धर्मात्मा तेनी रुचि केम करे?
विकारमां के जडमां आत्मानो धर्म नथी; अने आत्माना स्वरूपमां विकारनो के जडनो संग्रह नथी.
आत्मामां पोतानी अनंत निर्मळ शक्तिओनो भंडार छे, तेमांथी ज धर्म मळे तेम छे. माटे जेने धर्म करवो होय
तेणे चैतन्यस्वरूप आत्मानी दुकानमां जवुं एटले के तेमां अंतर्मुख थईने तेनां श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रता करवा. आ
सिवाय बीजे क्यांयथी धर्म मळे तेम नथी.
(––४७ शक्तिना प्रवचनमांथी)
समकितीनो स्वाद
सम्यग्दर्शन प्रगट थतां आत्मानो अनुभव थाय छे. जेवो सिद्ध भगवानने अनुभव होय छे तेवो चोथे
गुणस्थाने समकिती जीवने अनुभव होय छे; सिद्धने पूर्ण अनुभव होय छे ने समकितीने अंशे अनुभव होय
छे, ––पण जात तो ते ज. समकिती आनंदसागरना अमृतनो अपूर्व स्वाद लई रह्यो छे, आनंदना झरणामां
मोज माणी रह्यो छे.
जेने साची श्रद्धा प्रगटे एनुं आखुं अंतर फरी जाय, हृदय पलटो थई जाय, अंतरमां ऊथल–पाथल थई
जाय, आंधळामांथी देखतो थाय; अंतरनी ज्योत जागे तेनी दशानी दिशा आखी फरी जाय; जेने अंतर पलटो
थाय तेने कोईने पूछवा जवुं न पडे, तेनुं अंतर बेधडक पडकार मारतुं साक्षी आपे के अमे हवे प्रभुना मार्गमां
भळ्‌या छीए, सिद्धना संदेशा आवी चूक्या छे, हवे टूंका काळे सिद्ध थये छूटको, तेमां बीजुं कांई थाय नहि, फेर
पडे नहि.
–पू. बेनश्रीबेन लिखित समयसार–प्रवचनोमांथी,
वर्ते अंर्त शोध
जेणे धर्म करीने आत्मानुं सुख जोईतुं होय, ने भवभ्रमणना दुःखथी छूटवुं होय, तेणे बधा पडखेथी
मनन करीने अंतरमां शुद्धतत्त्वने गोतवुं. बधाय पडखाना विचारमां “मारुं शुद्धतत्त्व” कई रीते छे ते ज
गोतवुं. कई रीते गोतवुं ते सत्समागमे श्रवण मनन करीने शीखवुं जोईए. श्रवण–मननथी वारंवार तेनो
परिचय करीने अंतरमां शोध्या विना बीजा कोई उपायथी आत्माने सुखनो पत्तो मळे तेम नथी. अंतरमां
शोधीने पत्तो मेळववो जोईए. अंतरनी चीज छे ते बहार शोध्ये मळे तेम नथी. अंतरमां शोधे तो पोतानी
वस्तु पोताथी दूर नथी.
–चर्चामांथी