Atmadharma magazine - Ank 142
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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श्रावण: २४८१ : २३५ :
परमात्मानो आश्रय करतां केवळज्ञानरूपी परमात्मदशा प्रगटी जाय छे ते कार्यपरमात्मा छे. श्रद्धापर्याये
कारणपरमात्मानो आश्रय करीने तेमां एकाग्रता करतां सम्यग्दर्शन थयुं; ज्ञानपर्याये अंतर्मुख थईने
कारणपरमात्मानो आश्रय करतां सम्यग्ज्ञान थयुं; चारित्रपर्याये कारणपरमात्मानी भावना करीने तेमां एकाग्र
थतां सम्यक्चारित्र थयुं. ने तेनुं फळ मोक्ष छे. आ रीते कारणपरमात्मानी ज भावनाथी कार्यपरमात्मा थवाय
छे, बीजुं कोई तेनुं कारण नथी.
त्रिकाळी शक्ति अपेक्षाए बधा जीवो सिद्धसमान शुद्ध परमात्मा छे तेथी बधा जीवो कारणपरमात्मा छे...
परमात्मा थवानुं कारण शक्तिपणे बधा जीवोमां पड्युं छे. ते कारणनुं भान करीने तेना अवलंबने जे जीव शुद्ध
परमात्मदशा प्रगट करे ते जीवने कार्यपरमात्मा कहेवाय छे.
त्रीजी गाथामां मोक्षमार्गनी (–कार्यनियमनी) वात हती तेथी त्यां मोक्षमार्गना कारण तरीके
‘कारणनियम’ना वर्णनमां ‘शुद्धज्ञानचेतना परिणाम’ लीधा हता. अहीं पूरी शुद्धपर्यायनी (–अर्थात्
कार्यशुद्धजीवनी) वात छे तेथी तेना कारण तरीके ‘कारणशुद्धजीव’ लीधो छे. सातमी गाथामां कार्यपरमात्मानी
वात हती त्यां पण तेना आधार तरीके कारणपरमात्मानी वात लीधी हती. त्रीजी गाथामां मोक्षमार्गना कारणनुं
वर्णन हतुं ने अहीं मोक्षना कारणनुं वर्णन छे एटले टीकाकारे जराक शैलि फेरवी छे. एकमां गुणना शुद्धपरिणाम
(–कारणशुद्धपर्याय)नी वात लीधी छे ने बीजामां समुच्चयपणे आखा द्रव्यना कारणशुद्धपरिणामनी वात लीधी
छे.–पण छे तो बधुं अभेद निर्मळपर्याय प्रगटवामां कांई द्रव्य गुण ने कारणशुद्धपर्याय ए त्रणेनुं जुदुंजुदुं
अवलंबन नथी, एकाकार अभेद द्रव्यना अवलंबनमां ए त्रणेय समाई जाय छे.
जुओ, आ जीवद्रव्यनुं वर्णन! जीवना द्रव्य–गुण–पर्यायनुं अद्भुत वर्णन कर्युं छे. समयसारनी बीजी
गाथामां ‘जीवो...’ शब्द छे, तेनी टीकामां अमृतचंद्राचार्यदेवे सात बोलथी जीवनुं स्वरूप अलौकिक रीते वर्णव्युं
छे. तेम अहीं पण आ गाथामां ‘जीवा...’ शब्द छे तेनी टीकामां पद्मप्रभमुनिराजे जीवनुं अलौकिक वर्णन बीजी
ज शैलिथी कर्युं छे. आ वात झीणी तो छे; आत्मा पोते झीणो (अतीन्द्रिय स्वभावी) छे एटले तेनी समजण
पण झीणी ज होय. छतां ते समजवानुं सामर्थ्य आत्मामां भर्युं छे. पुण्य–पापना भावो स्थूळ छे, ते स्थूळ
भावो तो अनादिकाळथी जीव करतो ज आव्यो छे, तेमां कांई हित नथी. पुण्य–पापथी पार अतीन्द्रिय
आत्मस्वभावनी समजण करवी ते अपूर्व छे ने तेमां ज आत्मानुं हित छे. भाई! तारुं स्वरूप केवुं छे तेनी ज
आ वात छे; जो पोते समजवा मांगे तो पोतानुं स्वरूप पोताने न समजाय–एम केम बने? जेने पोताना
आत्मानी खरेखरी दरकार होय तेने पोताना आत्मानुं स्वरूप समजाया वगर रहे ज नहि. आत्माने जाणवानी
खरी दरकार कदी जागी नथी तेथी ते अघरुं लागे छे. मुनिराज तो कहे छे के भव्यजीवोना कानमां अमृत रेडनारी
आ वात छे; आ वात समजे तो आत्माना अतीन्द्रिय आनंदरूपी अमृतनो अनुभव थाय.
सर्वज्ञभगवाने केवळज्ञानमां विविधपर्यायोथी संयुक्त छ जातनां द्रव्यो जोयां छे; तेमांथी जीवना विविध
गुणपर्यायो बतावीने जीवनुं स्वरूप ओळखाव्युं. जीवनुं आवुं स्वरूप ओळखे तेने पोताना
कारणपरमात्मस्वभावना आश्रये सम्यग्दर्शनादि थया विना रहे नहि.
जीव सिवायनां बीजां पांच अजीवद्रव्यो छे, तेओ पण पोतपोताना विविधगुणपर्यायोथी संयुक्त छे.
पुद्गलद्रव्य पूरण–गलन स्वभाववाळुं छे एटले पुद्गलो भेगा थाय ने छूटा पडे एवो तेनो स्वभाव छे.
अने ते श्वेतादि वर्णोना आधारभूत छे. आ पुद्गलद्रव्य मूर्त छे ने तेना गुणो पण मूर्त छे; पुद्गल अचेतन छे
ने तेना गुणो पण अचेतन छे.
जुओ, अहीं पुद्गलना वर्णनमां पण पर्यायने गुण तरीके कहेल छे. जेम जीवना वर्णनमां मतिज्ञानादि
पर्यायोने विभावगुण कह्या, केवळज्ञानादि पर्यायोने शुद्धगुण कह्या, तेम आ पुद्गलना वर्णनमां पण ‘वर्णादि
गुणोना आधारभूत मूर्त छे’ एम गुणनी वात न लीधी पण ‘श्वेतादि वर्णोना आधारभूत मूर्त छे’ एम कहीने
पर्यायनी वात लीधी. श्वेतपणुं वगेरे गुण नथी पण वर्ण गुणनी पर्याय छे. आ रीते पुद्गलने पर्यायना
आधारभूत मूर्त कह्युं; तेम जीवमां पण ‘स्वभावगुणोना आधारभूत...’ कहेतां