Atmadharma magazine - Ank 143
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष बारमुं सम्पादकः प्रथम भादरवो
अंक दसमो रामजी माणेकचंद दोशी २४८१
आत्मानी लगनी
हंस! स्मरसि द्रव्याणि पराणि प्रत्यहं यथा ।
तथा चेत् शुद्धचिद्रूपं मुक्तिः किं ते न हस्तगा ।। ३।।
रे चेतन हंस! जेम प्रतिदिन तुं परद्रव्योनुं स्मरण–चिंतन करे छे, तेम जो
तुं शुद्धचिद्रूप आत्मानुं स्मरण–चिंतन करे तो शुं मुक्ति तने हस्तगत न थाय?–
जरूर थाय ज.
तत्त्वज्ञान तरंगिणीः अध्याय १प
जेम मन तुं रम विषयमां तेम जो आत्मे लीन,
शीघ्र लहे निर्वाणपद धरे न देह नवीन.
योगसार दोहा.
*
आ छे श्री गुरुओनो आदेश
आदेशोयं सद्गुरुणां रहस्यं सिद्धांतानामेतदेवाखिलानाम् ।
कर्तव्यानां मुख्यकर्तव्यमेतत्कार्या यत्स्वे चित्स्वरूपे विशुद्धिः ।। २३।।
पोताना चैतन्यस्वरूपमां विशुद्धता प्राप्त करवी ते ज सद्गुरुओनो
आदेश छे, ते ज समस्त सिद्धांतोनुं रहस्य छे, अने ते ज समस्तकार्योमां मुख्य
कर्तव्य छे.
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वार्षिक लवाजम छूटक नकल
त्रण रूपिया (१४३) चार आना
श्री जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट, सोनगढ (सौराष्ट्र)