Atmadharma magazine - Ank 143
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 21

background image
आ छे.सर्वज्ञपदनी प्राप्तिनो उपाय
(श्री प्रवचनसार गा. ४० उपर पू. गुरुदेवना प्रवचनमांथी; वीर सं. र४८१ वैशाख वद प)
(१)आ आत्मा ज्ञानस्वभावी वस्तु छे, तेनो ज्ञानस्वभाव अतीन्द्रिय छे, ते ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन करीने
श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रता करवाथी अतीन्द्रिय सर्वज्ञपद अने परमआनंद प्रगटे छे, ते आत्मानुं हित छे.
(र)पण, ज्ञानस्वभावनुं अवलंबन न करतां ईन्द्रिये ने ज आधीन वर्ते तो ते ज्ञान पराधीन छे. ईन्द्रियोने
आधीन वर्ततुं ते पराधीनज्ञान आकुळतावाळुं छे, ते ज्ञान भूत–भविष्यना पदार्थोने जाणी शकतुं नथी. पोते
पोताना ज्ञानस्वभावनो आश्रय न लेतां, बाह्य ईंद्रियोनो आश्रय करीने वर्ते ते संसारनुं कारण छे.
(३)जेने अतीन्द्रिय–सर्वज्ञपद अने परमानंद प्रगट करवो छे तेणे इन्द्रियोनी रुचि छोडीने ज्ञानस्वभावनी रुचि
करवा योग्य छे, मिथ्याद्रष्टि जीव इन्द्रियाधीन ज्ञानने लीधे इन्द्रियोनो दास थईने वर्ते छे.
(४) अतीन्द्रियज्ञान तो स्वभावनो आश्रय ले छे, ईन्द्रियज्ञान परसंयोगनो आश्रय ले छे.
स्वभावना आश्रयवाळुं अतीन्द्रियज्ञान ते सर्वज्ञपदनो उपाय छे. संयोगना आश्रयवाळुं इंद्रियज्ञान ते
आकुळतानुं कारण छे.
(प) सम्यग्दर्शन पण अतीन्द्रिय स्वभावना अवलंबनथी थाय छे. सम्यग्ज्ञान पण अतीन्द्रियस्वभावना ज
अवलंबनथी थाय छे. चोथा गुणस्थाने समकीतिने पण अंशे अतीन्द्रियज्ञान थयुं छे, ने तेटलुं ईंद्रियोनुं
अवलंबन तूटी गयुं छे, ते अतीन्द्रियज्ञान पूर्ण अतीन्द्रिय एवा सर्वज्ञपदनुं कारण छे;
(६)साधकने अंशे अतीन्द्रियज्ञान थयुं छे; त्यां जेटलुं इंद्रियोनुं अवलंबन वर्ते छे ते तो हेय छे. जेम,
साधकदशामां राग होय छे पण ते हेय छे, तेम इंद्रियज्ञान पण हेय छे. सर्वज्ञपद प्रगटाववुं होय तेणे
इंद्रियनो आश्रय छोडीने, स्वभावनो आश्रय करवो
(७) इंद्रियज्ञान पोते ज स्वभावनो आश्रय छोडीने इंद्रियोने आधीन वर्ते छे, कांई जड इंद्रियो तेने पराधीन
नथी बनावती! “इंद्रियोनुं निमित्त होय तो ज्ञान थाय”–एवी मान्यताथी अज्ञानी पोते पोताना ज्ञानने
पराधीन बनावे छे. ईंद्रियो ज्ञानने पराधिन बनावे छे एम जे माने छे ते कदी पोताना ज्ञानने स्वाधीन
अतीन्द्रिय बनावी शकतो नथी.
(८)अरिहंतदेवने जड इंद्रियो एम ने एम विद्यमान होवा छतां तेमनुं ज्ञान कांई इंद्रियोने आधीन वर्ततुं नथी,
तेमनुं ज्ञान तो स्वभावने अवलंबीने पुरुं अतीन्द्रिय वर्ते छे; त्यां इंद्रियो कांई तेने पराधीन नथी
बनावती.
(९) तेम नीचेनी दशामां पण इंद्रियोने लीधे कंई ज्ञान नथी थतुं. अज्ञानी कहे छे के ‘इन्द्रियोथी जणाय; इंद्रियो
न होय तो न जणाय’. अहीं तो ‘जैनबाळपोथी’ ना पहेला ज पाठमां कहे छे के “हुं ज्ञानथी जाणुं छुं”–
इंद्रियोथी नथी जाणतो. अज्ञानीने मूळमांथी ज वांधा ऊठे तेवुं छे. इंद्रियो नथी जाणती पण ज्ञान जाणे छे.
इंद्रियोने आधीन पण ज्ञान पोते थाय छे, ने स्वभाव तरफ वळीने अतीन्द्रियरूपे पण पोते ज थाय छे.–
आम बंनेमां जीव पोते स्वतंत्र छे.
(१०) आम पोताना स्वभाव तरफ न झूकतां, जे ज्ञान पर ज्ञेयो तरफ ज झूके छे ते पराधीन–इन्द्रियज्ञान
आकुळता उपजावनारुं छे, ते ज्ञान कयांय ठरतुं नथी पण परज्ञेयोने जाणवानी आकुळताथी परज्ञेयोमां
भम्या ज करे छे. स्वभाव तरफ झुकेलुं ज्ञान अतीन्द्रिय छे, अने तेनी साथे अतिन्द्रिय आनंद पण भेगो ज
छे. आवुं अतीन्द्रिय ज्ञान ज उपादेय छे. स्वभावनो आश्रय करीने वर्ततुं अतीन्द्रिय ज्ञान ज उपादेय छे.
स्वभावनो आश्रय करीने वर्ततुं अतीन्द्रिय ज्ञान ज सर्वज्ञपदनी प्राप्तिनो उपाय छे.