तेम क्रियानये अनुष्ठाननी प्रधानताथी सिद्धि थाय एवो आत्मा छे.
अहीं ४२ मा क्रियानयमां अनुष्ठाननी एटले के शुभनी प्रधानता कही छे ते एम बतावे छे के गौणपणे ते ज वखते
सम्यग्ज्ञाननो विवेक पण वर्ते छे. शुभरागनी प्रधानताथी सिद्धि सधाय एम क्रियानयथी कह्युं ते ज वखते, गौणपणे
शुद्धता छे तेनुं ज्ञान भेगुं होय तो ज, क्रियानय साचो कहेवाय. शास्त्रमां कयांक व्यवहारनी प्रधानतानुं कथन आवे
त्यां अज्ञानी जीवो तेनो ऊंधो अर्थ करे छे के व्यवहार (शुभराग) करतां करतां तेना आश्रये परमार्थनी प्राप्ति थई
जशे.–परंतु शास्त्रनो एवो आशय नथी.
आशय नथी पण साधकने ते बंने साधन एक साथे वर्ते छे तेनुं ज्ञान कराववा माटे ते कथन छे. साधकने ते बंने
वर्ते छे एम न माने तो ते मिथ्याद्रष्टि छे एम समजवुं, पण रागादि व्यवहारसाधनना अवलंबनथी निश्चयसाधन
पमाई जशे एम न समजवुं. जेने निश्चयनुं भान नथी, अने भिन्न साध्य–साधनने पण मानतो नथी, स्वच्छंदपणे
पापमां प्रवर्ते छे, एवा जीवने मिथ्याद्रष्टि कह्यो छे. अने साथे साथे त्यां ज एम पण कह्युं छे के जे निश्चयने तो
जाणता नथी ने केवळ व्यवहारअवलंबी छे ते एकला भिन्न साध्यसाधनभावने ज अवलोकनारा सदा खेदखीन्न
वर्ते छे ने शुभरागरूप व्यवहारसाधनमां ज वर्ते छे ते जीवो दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकतापरिणति रूप
ज्ञानचेतनाने कोई काळे पामता नथी, पण कलेशनी परंपराने पामीने संसारमां ज भ्रमण करे छे.
सो तेण वीदरागो भवियो भवसायरं तरदि ।।
मूळ सूत्रमां एकदम वीतरागतानी वात करी, पण हजी साधकने राग तो थाय छे तेथी, टीकामां आचार्यदेवे भिन्न
साध्यसाधननी वात करीने ते रागनुं ज्ञान कराव्युं छे. ‘कयांय जरा पण राग न कर’–एम कह्युं, पण साधकने राग
तो थाय छे तेनुं शुं? तो कहे छे के ते रागने भिन्न साधन मान, एटले के आत्माना वीतरागी रत्नत्रयरूप जे
परमार्थ साधन छे तेनाथी ते रागने भिन्न जाण.
छे. निश्चय सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रस्वरूप जे वीतरागभाव छे ते ज मोक्षनुं कारण छे, राग तो अंतरमां दाहने
उत्पन्न करनार छे. जेम चंदननो स्वभाव तो सुगंधी अने शीतळ छे, पण ते चंदनना वनमां अग्नि प्रवेश करतां
दाह उत्पन्न करे छे, तेम वीतरागभावरूप जे चंदनवन, तेमां रागरूपी अग्नि दाह (बळतरा) उत्पन्न करे छे; माटे
‘उत्तम पुरुषोए’ ते रागने तात्पर्य न मानवुं पण तेने हेय जाणवो, अने वीतरागभावने ज तात्पर्य मानवुं. तथा
ते वीतरागभाव शुद्ध आत्मद्रव्यना अवलंबनथी थाय छे माटे शुद्ध आत्मा ज उपादेय छे–एम जाणवुं. साधकने वच्चे
राग आव्या विना रहेतो नथी, पण तेने भिन्नसाधन कहीने स्वभावथी जुदो बताव्यो छे. रागने जे तात्पर्य माने
बीजो भादरवो