Atmadharma magazine - Ank 143a
(Year 12 - Vir Nirvana Samvat 2481, A.D. 1955)
(Devanagari transliteration).

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“आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?”
[२२]
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां आचार्यदेवे ४७ नयोथी आत्मद्रव्यनुं
वर्णन कर्युं छे तेना उपर पू. गुरुदेवना विशिष्ट–अपूर्व प्रवचनोनो सार.
(अंक १४३ थी चालु)
आ लेखांकनी विशेषता
क्रियानयथी तेम ज ज्ञाननयथी आत्मानुं स्वरूप शुं छे–तेनुं वर्णन आ
लेखमां छे; आ बाबतमां घणा जीवो अनेक प्रकारना गोटा वाळे छे, तेथी पू.
गुरुदेवे घणा प्रकारे खूब ज स्पष्टीकरण करीने आ विषय समजाव्यो छे; अने
साथे साथे पंचास्तिकायनी १७२ मी गाथानुं रहस्य पण समजाव्युं छे. ते
गाथानी टीकामां श्री आचार्यदेवे निश्चय–व्यवहार संबंधी खुलासो करीने
वीतरागभावने ज तात्त्पर्य कह्युं छे; पण यथार्थ गुरुगमना अभावे, अने
पोतानी ऊंधी द्रष्टिने लीधे केटलाक जीवो ते गाथानुं तथा टीकानुं रहस्य
समज्या विना ऊंधा अर्थ करीने मात्र पोतानी विपरीत द्रष्टिने ज पोषे छे.
तेथी जिज्ञासु जीवोना हितने माटे पू. गुरुदेवे आ प्रवचनोमां निश्चय–व्यवहार
बाबतमां पण घणो ज सुंदर खुलासो करीने, एम समजाव्युं छे के साधकपणामां
निश्चयनी साथे साथे व्यवहार पण होय छे. छतां साधकनुं (अने सर्व
शास्त्रोनुं) तात्पर्य तो वीतरागभाव ज छे, ने ते वीतरागभाव निश्चयना
आश्रये ज थाय छे, माटे निश्चयना आश्रये ज खरेखर मोक्षमार्ग छे; साधकने
शुभरागरूप व्यवहार होय छे पण ते खरेखर मोक्षमार्ग नथी, तेने मोक्षमार्ग
तरीके कहेवो ते तो मात्र उपचार छे.
– आ विषयनुं खास स्पष्टीकरण ते आ लेखनी विशेषता छे.
ः २७८ः आत्मधर्म खास अंक