रहेशे. जुदो.....जुदो....ने जुदो....त्रणेकाळ जुदो! चेतनने अने जडने एकमेक पणुं
कदी छे ज नहि, बंने त्रिकाळ जुदां ज छे. अरे जीव! जडथी भिन्न एवुं मारुं
चेतनस्वरूप छे–एवी भिन्नतानो बोध तो कर. जीवनमां भिन्नतानो बोध कर्यो
हशे तो देहना वियोग टाणे चैतन्यनां लक्षे समाधि रहेशे. जेने जडथी भिन्नतानुं
भान नथी ते तो देहमां ने रागमां एकत्व बुद्धिथी भींसाई जशे. भाई! जडथी
ने विकारथी हुं जुदो चैतन्यमूर्ति छुं–एवुं भान करीने जीवनमां तेनी भावना तो
कर. ए भिन्नतानी भावनाथी आत्मामां एकताना जोरे आनंदमां मशगूल थईने
उत्तम समाधिमरण थशे.